अब भी मौका
अब भी मौका कर्म सुधारो प्रकृति नियम बिसराने वालों खुद को खुदा मानकर के निज दौलत पर इतराने वालों जीव
Read Moreअब भी मौका कर्म सुधारो प्रकृति नियम बिसराने वालों खुद को खुदा मानकर के निज दौलत पर इतराने वालों जीव
Read Moreबात बात में मजहब की वो ढाल उठाते रहते हैं जब देखो वो नियम कानूनों की बाट लगाते रहते हैं.
Read Moreधन्य धन्य हो पांव पखारे जिसके विस्तृत सागर. जिसकी माटी में रमने को आतुर रहे नटनागर. बारी बारी आ देवों
Read Moreनेताओं के भाषण से नहीं राशन से ही पेट भरता है. राशन जुटाने में आम आदमी का दम निकलता है.
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