हाशिये के पार
परखा जो खुद को तो हाशिये के उस ओर पाया, केंद्रबिंदु समझा खुद को; पर धुरी के नीचे दबा पाया।।
Read Moreपरखा जो खुद को तो हाशिये के उस ओर पाया, केंद्रबिंदु समझा खुद को; पर धुरी के नीचे दबा पाया।।
Read Moreसमुन्दर हूँ,लहरों से यूँ रगबत रखता हूँ, मैं तूफाँ से खेलने की फितरत रखता हूँ। मैं इक जर्रा हूँ, पर
Read Moreमौत का मंजर फ़िज़ाओं में, पर इक ज़िन्दगी की खनक बाकी है; अभी सम्भावना बाकी है।। छा गया पतझड़ हर
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