देखहु जग बौराना, झूठे जग पतियाना………
पांच सौ साल पहले कबीर ने साधु को पहचानने की यह निशानी बताई थी – “साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप
Read Moreपांच सौ साल पहले कबीर ने साधु को पहचानने की यह निशानी बताई थी – “साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप
Read Moreआज़ादी के समय देश में चंद वर्षों के लिए सामाजिक रूप से दबे-कुचलों को आरक्षण देने की पहल शुरू की
Read Moreलगता है कि राजनितिक गलियारों में बौद्धिक दिवालियापन अपने चरम पर है। सिर्फ उत्तेजित करने वाले और आक्रोश भरे बयान,
Read Moreनंगे पाँव, मैला जिस्म उस पर लटकता फटा कुर्ता और कमर से सरकती फटी निक्कर हाथ में छोटा डोलू और
Read Moreमुहब्बत के मंदिर में, दिलों के सौदे होते हैं यहाँ अपने ही अपनों को खोते हैं प्यार कहीं खो गये
Read More