कविता : एक बादल आवारा
मैं हूँ एक बादल आवाराएक ठौर रुकूँ कैसेठहर गया मैं गर कहींभरभराकर बरस जाऊँगामिट जाएगा मेरा अस्तित्व वहींरूकने के लिए
Read Moreमैं हूँ एक बादल आवाराएक ठौर रुकूँ कैसेठहर गया मैं गर कहींभरभराकर बरस जाऊँगामिट जाएगा मेरा अस्तित्व वहींरूकने के लिए
Read Moreकभी कभी सोचता हूँ मैं क्या लिखूँगर मैं कवि होता तो आसमान मेरा घर होताचांद तारों की सैर करतासूरज पर
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