छंद मुक्त – अन्नपूर्णा की रचना

कविता

छंद मुक्त रचना : सताती गर्मी

तपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों

Read More