होली की कविता

कविता

रंगों का पर्व

खिड़की से बाहरजैसे ही देखाकिसी नेमुझ पररंगों से भरा गुब्बारा फेंका,मैं गुस्साया खूब बौखलायामगर करता भी क्या?जहाँ था, वहीं ठहर

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