कहानी …++पहला इम्प्रेशन++
पहला इम्प्रेशन
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“मम्मी मम्मीईईई कहा हो आप”
“क्या है छवि मैं छत पर हूँ आ रही हूँ! क्या हुआ क्यों चीखे जा रही हो?” मम्मी छवि बड़ी तेज बोली, “अरे बाबा क्या हुआ आती हूँ सीढियों पर गिरकर पैर थोड़े ही तोडवाने है.”
“हा बता क्या हुआ स्कूल में किसी से लड़कर आई है क्या?” ”
नहीं मम्मी, टीचर ने कहा है पत्र लिखकर ले आना ट्यूशन पर देखुगी.”
“अच्छा अच्छा पहले खाना खा ले फिर लिखवाती हूँ तेरा पत्र ..ट्यूशन तो चार बजे से है न अभी तो बस ढाई बजे है हाथ मुहं धो कर कपड़ें बदल ले तब तक खाना गरम कर देती हूँ.”
खाना जल्दी जल्दी ख़त्म कर छवि कापी पेन लेकर बैठ गयी- “मम्मी जल्दी करिए.”
रूपा ने विषय देख बोला- “अरे इतना तो सरल विषय दिया है पापा को ही तो पत्र लिखना है वह भी तू खुद से नहीं लिख सकती.”
“अरे मम्मी अब लेक्चर मत पिलाइए लिखवा दीजिये ना आप लिखवायेगी तो पहले दिन ही मेरा इम्प्रेशन अच्छा जमेगा.” बिटिया की बात सुन रूपा हंसी और लिखवाने लगी पत्र.
बिटिया के ट्यूशन जाते ही रूपा अपने पुराने दिनों में खो गयी जब वह अपने पापा को ख़त लिखती थी वह भी क्या दिन थे पोस्टकार्ड अंतर्देशीय पत्र खूब चलते थे. आजकल के बच्चे तो जानते ही नहीं ये किस बला के नाम है. बस विषय के एक भाग के रूप में पत्र लेखन करते है असलियत में तो पत्र लिखना जैसे भाता ही नहीं बस फेसबुक और ह्वाट्स एप्स पर खूब लिखवा लो स्टेट्स मेसेज वगैरह. हमारे जमाने में ये सब कहाँ थे? पत्र ही चलते थे खूब लिखे पत्र रिश्तेदारों को पति महोदय को सोच मन ही मन मुस्करा उठी रूपा. पति को लिखे पत्र तो सहेज रखे भी है इतने सालो तक ये आज की पीढ़ी क्या-कैसे संभालेगीं! कम्प्यूटर और मोबाईल मैमोरी में क्या? जमाना कितना बदल गया सोच अनमनी हो अतीत और भविष्य में तालमेल बैठाने लग गयी.
पत्र के विषय में सोचते सोचते रूपा अचानक अलमारी में सहेजे पति के पत्र निकाल पढ़ते पढ़ते खो सी गयी थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी, जल्दी जल्दी पुराने पर्स में फिर से पत्रों को सहेज अलमारी में जल्दी छुपा कर रख दिया और दरवाजा खोलने चली गयी.
बिटिया दरवाजा खोलते ही चहक उठी- “मम्मी मम्मी” रूपा बोली- “अरे बता तो क्या हुआ”
“मम्मी टीचर ने कहा तुम्हारी हिंदी तो बहुत अच्छी है बहुत सुन्दर लिखा हैं तुमने. सारे बच्चों ने खूब ताली बजायी मेरे पत्र को सुनकर और हा टीचर ने भी.”
“अच्छा तब तो तुम्हारा इम्प्रेशन खूब अच्छा पड़ा ना?” रूपा मुस्करा कर बोली.
“हाँ मम्मी पर ..”
“पर क्या?” रूपा थोड़ा आश्चर्य से बोली.
“..पर मम्मी मैंने टीचर को सच भी बता दिया बाद में कि पत्र आपने लिखवाया है. उन्होंने आपका मोबाइल नंबर माँगा. मुझसे पता नहीं, वो मेरी शिकायत शायद आपसे करेगी. मम्मी आप संभाल लेना. मैं अब खेलने चली. ठीक, जाऊ न?” खिलखिलाती हुई छवि बोली. रूपा आशंका से भर गयी पर मुस्करा कर कहा- “अच्छा ठीक है जाओ पर आधे घंटे में आ जाना अच्छा आधे घंटे मतलब आधे घंटे ही समझी.”
रूपा भी अपने काम में लग गयी तभी मोबाइल बज उठा उठाते ही आवाज आई- “आप छवि की मम्मी बोल रही हैं?”
रूपा समझ गयी कि ये छवि की टीचर ही होगी. वह सफाई देना ही चाहती थी कि उधर से आवाज आई- “आपकी बिटिया बहुत प्यारी और साफदिल है. उसकी यह साफगोई बनी रहे इसका आप ख्याल रखियेगा. आज तक बहुत बच्चो को मैंने पढाया है, पर ऐसे बच्चे आज के जमाने में कहा मिलते है. वह चाहती तो नहीं बताती पर उसने बताया कि आपने उसकी मदद की है. पढने में भी खूब अच्छी है, मेहनती है, खूब आगे बढ़ेगी.”
रूपा ने यह कहते हुए फोन रखा कि आप उसका ख्याल रखियेगा. उन्होंने भी भरोसा दिलाया- “आप चिंता ना करे मैं अपने बच्चो को खूब मेहनत से पढ़ाती हूँ. समय से छोड़ भी देती हूँ, जिस दिन भी देर हो आप निसंकोच फोन कर सकती हैं.”
मोबाईल पर टीचर से बात करने के बाद रूपा गदगद और आश्वस्त हो चुकी थी कि एक अच्छी टीचर मिल गयी है बिटिया को. मन ही मन मुस्कराते हुए फिर अपने काम में लग गयी.
शुभ संध्या बच्ची
उम्दा लिखी हो कहानी
नमस्ते दीदी …..आभार
अच्छी कहानी, बहिन जी.
नमस्ते भैया ……शुक्रिया