कविता

आओ ना मॉनसून

 

वसंत के मोहक
वातावरण में ,
धरती हंसती ,
खेलती जवान होती ,
ग्रीष्म की आहट के
साथ-साथ धरा का
यौवन तपना शुरू हुआ ,
जेठ का महीना
जलाता-तड़पाता
उर्वर एवं
उपजाऊ बना जाता ,
बादल आषाढ़ का
उमड़ता – घुमड़ता
प्यार जता जाता ,
प्रकृति के सारे
बंधनों को तोड़ता ,
पृथ्वी को सुहागन
बना जाता ….
नए – नए
कोपलों का
इन्तजार होता ….
मॉनसून जब
धरा का
आलिंगन
करने आता ….
आओ ना मॉनसून
==

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “आओ ना मॉनसून

  • आपने आह्वान किया और इधर मॉनसून की दस्तक केरला में हो गयी हम लोग भी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. बादल उमड़ घुमड़ रहे हैं कहीं कहीं थोड़े बरस भी रहे हैं.. गर्मी बहुत है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब! आपने मानसून का अच्छा आह्वान किया है.

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