प्रक्षालित अंगुली पर निशान लगाए भीड़ को निहारती ईवीएम मशीन के पास खड़ी मैं बड़ी उलझन में थी..। वज्जि जातीय समीकरणों के चक्रव्यूह में फँसा अपने शक्ति, शिक्षा और संस्कृति के गौरवशाली इतिहास पर कालिख पुतवा चुका था। आज उस चक्रव्यूह को भेदने के लिए दो शिक्षित युवा में से किसी एक का चयन करना […]
Author: *विभा रानी श्रीवास्तव
आप बदलो-जग बदलेगा
अस्सी-पचासी वर्ष का रामधनी जब-जब गाँव के युवकों को असमाजिक कार्य करते हुए देखता है तो उसे भीतर से बहुत दुःख होता है कि कभी यही गाँव नैतिकता के सिर मौर के रूप में जाना जाता था और आज…। उसे समझ में नहीं आता है कि वह क्या करे? इस उम्र में जहाँ हाथ-पैर साथ […]
समाधान
चित्र प्रदर्शनी के दर्शक-दीर्घा में आगुन्तकों की नजर एक विशेष चित्र पर अटक जाती और वह वाहः कर उठते हैं… अद्वितीय चित्र, चित्रकार को खोजने पर सभी को विवश कर रहा था… चित्रकार श्यामा और उसका भाई सतीश विह्वल थे…, “शीशे में अपनी शक्ल देख बिल्ली एक तस्वीर बनाती है जो शेरनी की हो जाती […]
वक़्त का न्याय
वक़्त करवट बदलता जरूर ही है … तालियों की गड़गड़ाहट और वन्स मोर-वन्स मोर का शोर साबित कर रहा था कि अन्य प्रतिभागियों-संगियों की तरह उसकी भी रचना और प्रस्तुतितीकरण से दर्शक दीर्घा में बैठे साहित्य प्रेमी आनन्दित हो रहे थे … सत्तरवेँ स्थापना दिवस के अवसर पर कंपनी द्वारा आयोजित काव्योत्सव में सभी झूम […]
खतरों के खिलाड़ी
“अरे! तुम इस समय?” अपने घर में आई कमला को देखकर चौंकने का अभिनय करने में सफल रहा हरेंद्र। होली की शाम थी वह घर में अकेला था। “क्यों? तुमने ही तो कहा था.. होली के दिन मेरे घर अबीर खेलने आना..! चलो अब अबीर मुझे लगा दो… घर में मुझे सब ढूँढ रहे […]
उलझन में लिपटा जीवन
.अनेकानेक दलों के मैनिफेस्टो को वह अबतक आकंलन-निरीक्षण-परीक्षण करता रहा था… आजतक कोई सरकार उसे ऐसी नहीं दिखी जो जारी किए अपने मैनिफेस्टो को पूरा लागू करने में सक्षम रही हो। फिर चुनावी मौसम गरमाया हुआ था.. उसके गाँव की याद सभी दलों को बारी-बारी से आना स्वाभविक ही था… सबसे उलझता रहता, “तुम्हारे दल […]
लघुकथा – जद्दोजहद
“दी! दीदी! सामने देखिए वह वही हैं न , जिन्हें समाज की दुनिया में लाने के लिए हम इनके आशियाने तक गए थे… समाजिक मुद्दों में कभी आना होता था तो पहले अपने घर वालों से आपसे फोन पर बात करवाती थीं , घर वाले सुनिश्चित हो पाते थे तब गोष्ठियों में आ पाती थीं…!” […]
लघुकथा – परीक्षा
“माँ! माँ आज मैं बेहद खुश हूँ… आप पूछेंगी ही क्या कारण है… पहले ही बता दूँ कि हमारी सारी चिंताएं-परेशानियाँ खत्म होने वाली है… मैं जिस कम्पनी में काम करती हूँ उसी कम्पनी में साकेत की नौकरी पक्की हो गई… अगले महीने से जॉइन कर लेंगे… पाँच साल से मची अफरा-तफरी खत्म होगी और […]
लघुकथा – क्रिसमस का तौहफा
“हैलो” “मम्मा आपसे एक बात करनी है…!” “हाँ! बोलो… तुम्हारी आज छुट्टी है क्या?” “हाँ माँ! यहाँ इस समय दस दिनों की छुट्टी होती है… आप चाची के पास ही होंगी… फोन का स्पीकर ऑन कीजिये न…!” “फोन का स्पीकर ऑन कर दी हूँ.. बोलो क्या बोलना है…!” “मिंटू भैया को जन्मदिन की हार्दिक बधाई […]
लघुकथा – मिथ्यात्व
“क्या सुधीर तुम खुद अपनी शादी कब करोगे?” छठवीं बहन की शादी का निमंत्रण कार्ड देने आए सुधीर से संजय ने सवाल किया…। आठ साल पहले संजय और सुधीर एक साथ नौकरी जॉइन किया था… लगभग हम उम्र थे… संजय की शादी का दस साल गुजर चुका था तथा उसका बेटा पाँच साल का था… […]