लघुकथा

आप बदलो-जग बदलेगा

अस्सी-पचासी वर्ष का रामधनी जब-जब गाँव के युवकों को असमाजिक कार्य करते हुए देखता है तो उसे भीतर से बहुत दुःख होता है कि कभी यही गाँव नैतिकता के सिर मौर के रूप में जाना जाता था और आज…। उसे समझ में नहीं आता है कि वह क्या करे? इस उम्र में जहाँ हाथ-पैर साथ नहीं दे रहे…। जिन्हें यानी राजनीतिक दलों के नेताओं को इनका नेतृत्व करना चाहिए वो भी तो…।
        वो स्मरण करता है कि प्रत्येक राजनीतिक दल जब चुनाव आता है तो तरह-तरह के झूठे वायदे करते हैं… युवकों को सब्ज-बाग दिखलाते हैं कि उनकी पार्टी सत्ता में आयेगी तो हर हाथ को काम तथा हर खेत को पानी मिलेगा… गरीबी का नामोंनिशान नहीं रहेगा… किन्तु जैसे ही उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो सिवा अपने घर-पेट भरने के किसी की भी स्मृति नहीं आती…।
    कुछ सोच-विचारकर वह गाँव के हर घर के विषय में सोचता हुआ और उसके समझ में जो लोग वास्तव में बुद्धिजीवी हैं उन्हें इकट्ठा करता है और कहता है, “अपने गाँव के युवकों की स्थिति को देख रहे हो?”
  “हमलोग क्या कर सकते हैं?”
“आप ही लोग तो कर सकते हैं, अब समय आ गया है कि बुद्धिजीवियों को पुनः राजनीति में आना चाहिए। मतदान करने की प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा हो।”
  “इस दलदल में कौन जाएगा ?”
“इसी सोच ने तो इस गाँव क्या इस देश की यह हालत कर दी है , आपलोग आगे बढिये… इस दलदल को साफ कीजिए… यह सही है इसमें देर लगेगी किन्तु साफ अवश्य हो जाएगी… नहीं तो आपलोग सोचें आपके जो बच्चे बड़े हो रहे हैं… उनका क्या होगा?”
“बच्चे बड़े हो रहे हैं… उनका क्या होगा?” यह वाक्य कानों में पड़ते सब भीतर तक हिल जाते हैं… और उन्हें लगने लगता है… हाँ! रामधनी बाबा की बातों में दम है… गाँव और देश के उज्ज्वल भविष्य हेतु उन्हें जो भी संघर्ष करना होगा, वे लोग जरूर करेंगे।
एक संकल्प के साथ बुद्धिजीवी चले जाते हैं किन्तु रामधनी के आँखों मे चमक के साथ आने वाली युवा पीढ़ी के चेहरे खिले हुए दिखने लगते हैं.

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ