शिवा जी और ‘हिन्दू साम्राज्य’ का झूठ
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ की मेरे फेसबुक के कई मित्रो ने आज ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’ की शुभकामनायें दे रहे थे । पहले तो मुझे समझ ही नहीं आया की यह कौन सा नया दिवस पैदा हो गया। पूछने पर एक मित्र ने बताया की आज यानि 11जून को महाराजा शिवा जी का राज्य अभिषेक संस्कार हुआ था और हिन्दू राज्य की नीव रखी गई थी।
यह सुन कर मैंने अपना सिर धुन लिया , और सोचने लगा की कैसा मजाक किया जा रहा है यह ?कैसे आज शिवा जी के राज्याभिषेक संस्कार को हिन्दू साम्राज्य का नाम देके इतिहास से छेड़ खानी की जा रही है। वो शिवा जी जिसका राज्य अभिषेक संस्कार करने के लिए पुणे का कोई हिन्दू धर्म का ठेकदार पंडित तैयार नहीं हुआ, क्यूँ की शिवा जी एक शुद्र थे मजबूरन काशी के ब्राह्मण को बुला के अपना राज्याभिषेक करवाना पड़ा। उस ब्राह्मण ने भी शिवा जी का राज्याभिषेक संस्कार हाथ के अंगूठे की वजाय पैर के अंगूठे से किया और वेद मंत्रो के स्थान पर पुराण मन्त्र पढ़े।
शिवा जी महाराज स्वयं महान थे ही उनमे और भी कई गुण थे, वह एक निर्भीक योद्धा थे, कुशल संगठनकर्ता थे, उन्होंने अपने जीवन में बहुत कम युद्ध हारे थे अधिकतर जीते ही थे, परन्तु स्वयं विद्वान् होने के बाद भी उन्होंने अपना अष्ठ प्रधान मंत्री मंडल बनाया जिसमें की सात ब्राहमण और एक कायस्थ थे। जिसमे मोरोपंत पिंगले प्रमुख था जो कोंकड़ी ब्राह्मण था । इसके अधीन सभी ग्रामो से लगान वसूलना और किलो की देख रेख करने का जिम्मा था ।यह हमेशा से शिवा जी के खिलाफ साजिश रचता था। उसने सुझाव दिया शिवा जी को वैध मान्यता लेके हिन्दू शास्त्रों के मुताबिक अपना राज्याभिषेक करवा लेना चाहिए।उसकी बात मान के शिवा जी ने शानदार तरीके से अपने राज्याभिषेक की तैयारी की पर ऐन वक्त पर सोची समझी चाल के अनुसार शिवा जी को शुद्र बता के हिन्दू शास्त्रों के अनुसार उनका राज्याभिषेक करने से पुणे के सभी ब्राह्मणों ने इंकार कर दिया।
दुखी होके शिवा जी ने काशी के ब्राह्मण गंगा भट्ट को भारी धन राशि (लगभग उस समय का एक लाख रूपये) देके बुलाया , उसने पहले शिवा जी का झूठा इतिहास लिखा जिसमे उसने शिवा जी को उदय पुर राज घराने के सिसोदिया वंश का क्षत्रिय घोषित किया फिर उनका तिलक हाथ के अंगूठे के करने की बजाय पैर के अंगूठे से किया।
इस अपमान को शिवा जी सहन नहीं कर सके अत: उन्होंने दोबारा राज्याभिषेक कराने के लिए शाक्त पंथ की दीक्षा ली , जो बौद्ध धर्म की ही एक शाखा थी और समानता के अधिकार को मान्यता देती थी। उसके लिए पहले उन्हें एक अछूत स्त्री से शादी करनी पड़ी और दुबारा अपना राजतिलक शाक्त विधि से कराना पड़ा।
ऐसे में कौन कह सकता है की शिवा जी ‘हिन्दू साम्राज्य’ लाना चाहते थे? जिन हिन्दुओं ने उनका राजतिलक तक नहीं किया क्यूँ की वह एक शुद्र थे ऐसे में शिवा जी का हिन्दू साम्राज्य लाने की कल्पना करना अपने में बड़ा झूठ है।
YOU HAVE WRITTEN THE STORY WRONG
बिल्कुल सही कहा आपने, गेब्रियल जी.
आपका लेख बहुत सी गलत कल्पनाओं से भरा हुआ है. शिवाजी ने स्वयं अपने राज्य को हिन्दू पद पादशाही कहा था. समर्थ गुरु राम दास उनके गुरु थे. उन्हीं कि प्रेरणा से उन्होंने हिन्दू साम्राज्य स्थापित किया था. सैकड़ों वर्षों की इस्लामी हमलावरो की गुलामी के बाद ऐसा हुआ था. इसीलिए स्वामी समर्थ ने उनको अपना विधिवत राजतिलक कराने की सलाह दी थी. महाराष्ट्र का कोई बड़ा ब्राह्मण इसके लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि वे सब मूर्ख और डरपोक थे. इसलिए शिवाजी ने वाराणसी से एक विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर अपना राज्याभिषेक संस्कार कराया था.
यह आपकी कल्पना है कि अंगूठे से तिलक किया गया था या बाद में वे बौद्ध बन गए थे. इसका कोई सबूत नहीं मिलता. मोरोपंत जी पिंगले के बारे में भी आपके विचार गलत हैं.
मैं इस लेख का उत्तर नहीं देना चाहता था, क्योंकि व्यर्थ में वाद-विवाद करना, वह भी अपने साथियों से, मुझे पसंद नहीं है. लेकिन दूसरों में गलत फहमी पैदा न हो, इसलिए उत्तर दे रहा हूँ.
इतिहास निर्मित नहीं किया जाता उसे खोजा जाता हैं। क्या आप एक भी ऐतिहासिक प्रमाण भी इस बात का दे सकते हैं की शिवाजी ने बुद्ध मत की दीक्षा ली थी ?