एक युवा का सुघोष…
राह नहीँ छोडूँगा
चाह नहीँ छोडूँगा
आ जाएँ पथ पर शूल सभी,
प्रयत्न हो जाएँ धूल सभी,
मै नित नवक्राँति अलख की बाँह नही छोडूँगा,
राह नही छोडूँगा।
मैँ दृढता से बढता जाता आगे,
टूटे बंधन के सब धागे,
किँतु विश्वास तुम्हे दिलाता हूँ विश्वास नहीँ तोडूँगा,
राह नही छोडूँगा।
मिले निराशा के ढेरोँ घाव मगर,
मन मेँ घुलने ना दूँगा ये जहर,
गिरती मिटती आशाओँ से नेह नही जोडूँगा,
राह नहीँ छोडूँगा,
चाह नहीँ छोडूँगा।
________सौरभ कुमार दुबे
वाह ! वाह ! बहुत खूब !!