गीत/नवगीत

गीत

दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन किस किस को अंधियारा लिख दूं एक अमावस मन मे बैठी बनी कामनाओं की थाती एक अमावस घर मे बैठी कूट रही मदमोह से छाती महाविनाश के तट पर आकर युद्ध बिगुल की धारा लिख दूं दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन किस किस को अंधियारा लिख […]

हास्य व्यंग्य

हास्य व्यंग्य – मीराबाई पर किताब

जब मैंने सोचा कि मैं मीराबाई पर किताब लिखूं तो एक दृश्य मेरे मन में आया… आज की मीरा कैसी होगी? क्या वास्तव में उसका प्रेम इतना प्रगाढ़ होगा कि दिन रात एक मूर्ति के सहारे तानपूरा लिए… मीरा के प्रभु गिरधर नागर गाती रहे..?? थोड़ी देर पहले एक पार्क में टहल रहा था, वहां […]

ब्लॉग/परिचर्चा राजनीति

मोदी जी के चुनावी अभियान से हम क्या सीखें?

दोस्तों हमारे देश में चुनाव खत्म हो चुके हैं, नेताओं की आवाजाही, प्रचारों का हो हल्ला, मुद्दों की बातचीत, हंगामे, शोरगुल, नारे सब लगभग समाप्त हो चुके हैं! चुनावों के परिणाम वर्तमान सरकार के पक्ष में आये हैं, और पहले से भी ज्यादा सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार […]

संस्मरण

जब एक पेटी में बंद थी पूरी लाइब्रेरी

स्कूल के दिनों से बेहतरीन यादें किसी के जीवन में दूसरी भी हो सकती हैं इसकी कल्पना करना मुश्किल है! हम जब पांचवी में केंद्रीय विद्यालय में आये तब हमारे शहर में ये स्कूल एक जेल बिल्डिंग में लगता था, जेल बिल्डिंग में स्कूल होना आपको आश्चर्य में डाल देगा लेकिन अन्दर के तूफानी लड़कों को देखकर लगने लगा […]

सामाजिक

बुराड़ी कांड से समाज को मिले सीख

जब आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और आप पूरी तरह से अपने दिमाग से संतुलन खो देते हैं असल मे तब ही आप इतनी बड़ी मूर्खता करते हैं कि अमूल्य जीवन आपके हाथों से निकल जाता है। इस खेल में फंसे दिल्ली के बुराड़ी इलाके के 11 सदस्यो का भरापूरा परिवार एक साथ काल […]

कविता पद्य साहित्य

कविता: बदलते रंग

आज कुछ प्रज्ज्वाल लपटें उठ रही हैं मन के अंदर आज कुछ कंपित हुआ है जैसे भीतर का समंदर टूटते हुए तिलिस्मों का बयान लिख रहा हूँ मैं बदलते रंग धरती आसमान लिख रहा हूँ।। शब्द जैसे ढाल बनकर भाव जैसे काल बनकर हो रहा है समर इनमें धार का औजार बनकर वज्रघातों से है […]

कविता पद्य साहित्य

कविता :: करो संकल्प साधना

करो संकल्प साधना जैसे पर्वत का संकल्प है अटल ही रहना जैसे नदियों का संकल्प है कल कल बहना पुष्प सुगंधी फैलाने का संकल्प लिए है सुरभित बाग़ बाग़ को शोभित स्वतः किए है बन फूलों का माधुर्य धरा की बनो प्रेरणा करो संकल्प साधना अम्बर के विस्तार ने जैसे सबको घेरा और दिवाकर का […]

कविता पद्य साहित्य

कविता वैचारिक मुक्ति की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है

अंधियारी रातों में आजकल कविता देर रात तक जागती है, जुगनू के प्रकाश सी चंचल शब्दो की माला तरंगित हो कागज पर भागती है, कविता दुखित है, पीड़ित है, हृदय से विकल है। शोषित है, क्रंदित है, रुदित है विफल है।। सहसा पीड़ा उमड़ उमड़ उठती है, मन कोने के तट घुमड़ घुमड़ उठती है, […]

गीत/नवगीत

कविता: आत्मसमर्पण

जगमग जगमग दीप जल उठे देवलोक से पुष्प बरसते अभिनन्दन की इस बेला में दर्शन को हैं प्राण तरसते वंदन कर मैं चरण पखारूँ दिव्य माल का अर्पण कर दूँ हे मोहन हे नटवर नागर आओ आत्मसमर्पण कर दूँ भवभय भंजन तुम कहलाते निर्भय अभय तुम्ही से पाते कृत कृत हो कर सेवा करते अधर […]

गीत/नवगीत

जयकार सुनाई नही देता

घनघोर घनन इस आंधी में तट पार दिखाई नहीं देता भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता लूथड चीथड बिक जाते हैं अब सोने के दामों में लाखों की साज सजावट में श्रृंगार दिखाई नही देता नीलामी के दरवाजे पर भारत माँ का आँचल है बेमानी के अम्बर पर अब काले धन का […]