हास्य व्यंग्य

हास्य व्यंग्य – मीराबाई पर किताब

जब मैंने सोचा कि मैं मीराबाई पर किताब लिखूं तो एक दृश्य मेरे मन में आया… आज की मीरा कैसी होगी? क्या वास्तव में उसका प्रेम इतना प्रगाढ़ होगा कि दिन रात एक मूर्ति के सहारे तानपूरा लिए… मीरा के प्रभु गिरधर नागर गाती रहे..??

थोड़ी देर पहले एक पार्क में टहल रहा था, वहां एक लड़की स्लीवलेस और जीन्स पहनकर बेंच पर उदास बैठी अपने बड़े से मोबाइल के स्क्रीन पर उदासी भरी निगाहों से देख रही थी, मैं टहल रहा था, मेरे मन में कल्पनाएँ यही थी कि दीदी के कृष्ण भगवान् शायद रूठे हुए हैं, इसीलिए जो ये उंगलियाँ स्क्रीन पर खचाखच चल रही हैं, वो अपने प्राणनाथ को मनाने के लिए चल रही हैं, थोड़ी देर में मेरे मन में विचार आया, कि ये फोन ही आज की मीरा का तानपूरा है, मन में अपने प्राणनाथ की मंगल मूर्ती विराजमान कर जो ये उदासी है शायद यही विरह की तड़प है, और यही आगे चलकर अपने प्रियतम को प्राप्त करने का मोक्ष दिलाने वाली स्थिति है, अब मैं और तेजी से चक्कर लगाने लगा, मेरे मन में पूरी कहानी अपनी रूपरेखा ले चुकी थी…. जरुर मीरा के गिरधर नागर whatsapp या messenger में रूठे हुए होंगें, और उन्हें प्राप्त करने की लालसा में, आशा से भरे मीराबाई के नैन टकटकी लगायें स्क्रीन पर देख रहे होंगे,….. कुछ देर में पार्क घूमकर जब मैं वापस आया तो मैंने पाया…. एक महानुभाव (अब आप समझ लीजिये) जिन्होंने लाल कलर की अपनी पतली टांगों से चिपकी हुयी ट्राउजर पहनी हुयी थी, एक पतली सी टी शर्ट जिसपर एक्स-मैन बना हुआ था, और जो उनके अत्यंत स्लिम से बदन को छूकर हवा में उड़ रही थी, उनके पैरों में सुंदर सफ़ेद लोफर थे, और उनके बाल जो दोनों तरफ से उड़े हुए और बीच से खड़े और कुछ भूरे रंग के थे, यूँ लग रहा था कि काली कमली वाले कन्हैय्या… भूरी कमली में आये हैं…. आँखों से चश्मा उतारकर वे देवपुरुष अपनी करिज्मा को रोककर खड़े हुए.., यूँ लगा कि मीराबाई के भाव बदले… वे बेंच से उठी, अपना स्टाल मुंह पर बंधा…. फोन को जीन्स के जेब पर डाला, और एक टांग उठाकर बाइक के फूटरेस्ट पर रखकर…. जैसे झांसी की रानी घोड़ी पर चढ़ती थीं उस अदा से चढ़ीं, तो उन देवपुरुष ने गाडी का एक्सीलेटर देकर… जूँ…जूँ… करके बजाया और बड़ी ही गति के साथ दोनों वहाँ से निकल गये…. आसपास के कुछ लोग और मैं उन्हें देखते रह गये…. खैर मेरी मीरा को उसके कृष्ण मिल गये… उन्हें देर तक दूर जाते देखता रहा तो ऐसा लगा भगवान् गोलोक की ओर लेकर निकल गये हैं…. आज जब मीरा को इतने जल्दी भगवान् प्राप्त हो सकते हैं तो फिर किताब लिखने की आवश्यकता ही क्या है?
उसी समय किताब का विचार त्याग दिया! 😉

—–सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!