कविता

और पेड़ बहुत रोया….

मेरी इन दो भुजाओँ मेँ,
मेरी पत्तियोँ की छाओँ मेँ,
दो मासूम कलियोँ को दरिँदोँ ने मसल डाला,
मैँ देखता रह गया,
मेरी भुजाएँ मेरी टहनियां,
जिसपर टंगी दो बेटियां,
मानवता के निर्मम हत्यारोँ का शिकार हो गयीँ,
सपने संजोने की उमर मेँ बलात्कार हो गयीँ।
मैने पिता के हृदय को अकस्मात महसूस किया,
दृश्य ये दारुण देख देख क्रोध का विष केवल पिया,
मेरा भी हृदय है मुझे भी हृदयाघात हुआ,
क्षणभर को मैँ बिलखता रहा मन मेरा भी बलात हुआ।
मेरी रुह भी रोती रही बस तमाशा देखता रहा,
पेड होने की अपनी हताशा देखता रहा।
मैँ सजीव होकर निर्जीव सा खडा ही बस रह गया,
क्षण भर मेँ प्राणोँ का घट बच्चियोँ का बह गया।

इतना कहकर मुझसे पेड बिलखता ही रहा,
सारी घटना का गवाह चुपचाप सिसकता ही रहा,
जैसे अपनी ही आँखोँ के आगे अपनी लाडलियोँ को हो खोया,
कुछ इस तरह वो आँसू बहाता पेड बहुत रोया।

______सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “और पेड़ बहुत रोया….

  • बहुत अच्छी कविता .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक रचना है. हमारा दुर्भाग्य कि ऐसे दृश्य भी देखने पड़ते हैं.

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