प्रभु दर्शन की उत्कंठा
तिमिर घनेरा
है अंधेरा
फिर भी एक आस है,
आत्मा को
ब्रह्म तक ले जाने का
प्रयास है।
गोविँद की
मुरली के स्वर गूँजते
हैँ मन मे,
मधुबन की
खुशबू उतर आती है
आँगन मे।
क्षण क्षण
अमृत बरसता है
जैसे,
प्रेम से पूरित
अश्रुधार हो ऐँसे।
हे प्राणनाथ अब
समय ना लगाओ,
तरसते नैनोँ को और
ना तरसाओ।
मन की विव्ह्लता
और ना बढाओ,
नारायण अब चंद्र सा
मुख हमेँ दिखाओ।।
___सौरभ कुमार दुबे
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