***मैँ मध्यप्रदेश हूँ ***
मैँ भारत माता का हृदय हूँ,
सत्य सार्थक की विजय हूँ,
ग्वालियर का राजभवन मै, उज्जैनी का महाकाल हूँ,
राजाओँ की नगरी इंदौरी ठाट बाट का भोपाल हूँ।
खजुराहो का शिल्प महान फिर, बाँधवगढ का शेर हूँ,
कभी शीतल जल का धुँआधार मैँ, खेतोँ की मीठी बेर हूँ।
नर्मदे की कल कल धारा, शिप्रा का मैँ अविरल जल,
निमाड, मालवा, बुंदेलखंड मुझमे ही बसता है चंबल।
सागर, सतना, रीवा, पन्ना मेरे आँचल के कुछ फूल,
सिँध, बेतवा, तवा, ताप्ति महकाती धरती की धूल।
वीरोँ की गाथाओँ से है भरा पडा मेरा इतिहास,
नित नव नूतन उमंग है और जीवन का नया उल्लास।
सतपुडा, महादेव, पचमढी के पर्वत मेरा मान बढाते हैँ,
किसान बोते सोया, गेहूँ पहले माँ को चढाते है।
मैँ धर्मस्थल, कर्मस्थल मैँ ही भारत का कृषिप्रधान,
भूल गये तो याद करो फिर मुझको मिलता नित सम्मान।
मेरा जन जन बढकर आगे भारत का गर्व बढाएगा ,
मुझको तो है यही आस वह विश्वविजय कर जाएगा।
मैँ उदय कर राष्ट्र भावना, समुचित करता सारे उद्देश हूँ।
जन जन के मैँ हित की भूमि भारत का मैँ मध्यप्रदेश हूँ।।
______सौरभ कुमार दुबे
बढ़िया कविता. मुझे मध्य प्रदेश ज्यादा देखने का मौका नहीं मिला. उज्जैन और जबलपुर गया हूँ बस. पचमढ़ी जाना चाहता हूँ.