*अब सपनोँ को जीना है!*
घट कालकूट का पडे पीना,
चाहे छलनी कर दे कोई सीना,
मैँने इतना ठान लिया है,
जीवन को रण मान लिया है,
इस रणक्षेत्र मेँ बहाना होगा अपना खून पसीना है,
अब सपनोँ को जीना है।
ये कर्मक्षेत्र है, धर्मक्षेत्र है,
नहीँ सूने अब मेरे नेत्र है,
आशा अभिलाषा की बना कसौटी,
पी पीकर चाहे विष की ही घोँटी,
जीवन ज्योति जागृत करके नयीक्राँति को सीना है
अब सपनोँ को जीना है।
नव विकल्प, नव संकल्प लेकर,
समय चैन को अब अल्प देकर,
हर एक वार का पलटवार बन,
खंजर के बदले की तलवार बन,
उसको घात लगाना जिसने सुख माता का छीना है,
अब सपनोँ को जीना है।
___सौरभ कुमार दुबे
बहुत खूब !