मन : हार जीत
मन हारा तो मैँ हारा
मन जीता तो मैँ जीता
पल पल क्षण क्षण जीवन संग्राम,
मन के बाहुबल मेँ बीता।
खंड खंड हो गयी चेतना,
तार तार जब मेरी वेदना,
कौन अपना कौन पराया,
खुला समकक्ष ये कभी भेद ना,
जब उठाया मन का अस्त्र तो काटा बाधाओँ का फीता,
मन हारा तो मैँ हारा,
मन जीता तो मैँ जीता।
रक्त उबलता नयी क्राँति को,
प्रश्न नहीँ रह गया शांति को,
कुंठित होता कोई तो हो जाए,
पलने ना दूँगा अब गलत भ्रांति को,
मतभेदोँ मेँ मनभेद हुआ तो भावुकता का घट रीता,
मन हारा तो मैँ हारा,
मन जीता तो मैँ जीता।
___सौरभ कुमार दुबे
बहुत अच्छी कविता एवं भाव. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत !