कविता

मेरा हिँदुत्व

मेरा हिँदुत्व केवल धर्म नहीँ है,
पंथ नहीँ है, वर्ग नहीँ है,
ये मन की विचारधारा है,
मुझको प्राणोँ से प्यारा है,
ये जीवन जीने की कला महान,
ये सत्यपथ का महाविज्ञान,
ये कोई जात नही है,
ये विचार की बात नही है,
ये मन से मन का जोड है,
भ्रम उलझन का तोड है,
जीवन मूल्योँ का निचोड है,
जिसपर मुझको अतिशय गर्व है,
ये मानवता का महापर्व है,
बिखराता नहीँ जोडता है,
बैर मनोँ के तोडता है,
मानव से मानव का जोडना नाता,
मुझको मेरा हिँदुत्व सिखलाता।
दुश्मन के लिए शमशीर है,
दुष्टोँ के सीने देता चीर है,
पापी नहीँ पाप को मारे,
हर मानुष को श्राप से तारे,
संदेश प्रेम है सदा हमारा,
सत्यमेव का देते नारा,
पर रणभूमि मेँ रणबीर महान ये,
शत्रु मर्दन मेँ नर्म नहीँ है,
मेरा हिँदुत्व केवल धर्म नहीँ है,

___सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “मेरा हिँदुत्व

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. आपने हिंदुत्व को सही रूप में समझा और जिया है.

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