उत्तराखंड का शोक !
कोई नालायक और अकर्मण्य सरकार होने पर आम जनता को क्या-क्या भुगतना पड़ता है, यह उत्तराखंड की कांग्रेस सरकारों (विजय बहुगुणा और हरीश रावत दोनों) को देखकर बखूबी समझा जा सकता है. पिछले वर्ष केदार घाटी में बाढ़ से भयंकर तबाही हुई थी, जिसमें हजारों तीर्थयात्रियों के प्राण चले गए और अकूत आर्थिक हानि हुई वह अलग.
कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि यह आपदा भी सरकारों की लापरवाही और नालायकी के कारण आई थी, फिर भी यदि हम इसे पूरी तरह प्राकृतिक आपदा भी मान लें, तो भी ये सरकारें अपने दायित्व से मुक्त नहीं होतीं. किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद सरकारों की यह जिम्मेदारी होती है कि वह पीड़ितों को राहत पहुंचाए, जो मर चुके हैं उनके अंतिम संस्कार की उचित व्यवस्था करे, मलवे को साफ़ कराये और ऐसे कदम उठाये कि भविष्य में ऐसी आपदाओं का सामना न करना पड़े.
परन्तु अत्यन्त खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि उत्तराखंड की सरकारें अपने इन सभी दायित्वों को पूरा करने में बुरी तरह असफल रही हैं. इसका पता इस बात से चलता है कि इस दुर्घटना के एक साल बाद तक भी मलबा साफ़ नहीं कराया गया और अभी तक उसमें से लाशें (कंकाल मात्र) निकल रही हैं. क्या इस अकर्मण्यता के लिए कांग्रेस सरकार और पार्टी को शर्म से डूब नहीं मरना चाहिए?
इस आपदा के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केदारघाटी को फिर से बनाने और सारे कार्य कराने कि जिम्मेदारी स्वयं लेने का प्रस्ताव रखा था. वे केवल ६ माह का समय चाहते थे और गुजरात के सरकारी कोष से इसके लिए ५०० करोड़ की राशि खर्च करने को तैयार थे. अगर मोदी जी एक छोटी सी अपील ही कर देते तो देश-विदेश से अरबों की राशि एकत्र हो जाती.
परन्तु कांग्रेस सरकारों की क्षुद्रता देखिये कि उन्होंने मोदी जी को कुछ भी करने देने से साफ़ मना कर दिया. उनको शायद इस बात का डर था कि अगर उत्तराखंड में मोदी जी ने अच्छा काम करके दिखा दिया, तो कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा को इसका लाभ मिल जायेगा. बेचारे मोदी जी अपमानित होकर अपनी टीमों के साथ चुपचाप लौट गए. यह तो उनकी महानता है कि उन्होंने आगे कभी कांग्रेस सरकारों की इस क्षुद्र हृदयता की कोई चर्चा कहीं नहीं की.
लेकिन नीचता ही हद तो यह है कि कांग्रेस सरकारों ने मोदी जी को तो कुछ करने ही नहीं दिया, खुद भी कुछ नहीं किया. इसका प्रमाण है केदार घाटी की वर्तमान हालत, जहां मलबे से लाशें आज भी निकल रही हैं और केदार मंदिर तक जाने का कोई रास्ता ही अभी तक नहीं बना है. उत्तराखंड इन नालायक और अकर्मण्य सरकारों के अभिशाप से कब मुक्त होगा, कोई नहीं जानता. तब तक जनता के पास अपना सिर पीटने और शोक मनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.