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क्या वेदो में विज्ञान है?

पिछले दो -तीन शताब्दियों से जैसे जैसे पश्चिमी विज्ञानं ने तरक्की कर रहा है , उन्होंने विज्ञानं के क्षेत्र में अभूतपूर्व अविष्कार किये जिससे निश्चय ही मानवता भला हो रहा है । मनुष्य का जीवन सुगम और सुविधा पूर्ण हुआ है , उन्ही अविष्कारो के कारण सिमटती गई , मनुष्य के बीच दूरियाँ कम हुई। इस तरह पश्चमी अविष्कारो के लाभ से क्या क्या हुआ यह शायद आप सबको बताने की जरुरत नहीं।

यह भी सत्य है की संसार के बाकी हिस्सों में कंही विज्ञानं का विरोध हुआ तो कंही समर्थन। पर भारत में इन सबसे अलग प्रतिक्रिया हुई , धर्मगुरुओ द्वारा यह सिद्ध किया जाने लगा की फला वैज्ञानिक अविष्कार तो हमारी धर्म ग्रन्थ में था और हमारे पूर्वजो ने तो पहले ही यह खोज लिया था। इसका कारण था पश्चमी देशो के सामने अपनी हीन भावना , जब विज्ञानं की उन्नति और पश्चमी सभ्यता के कारण तथा कथित ज्ञानी भारतीय भी अपने मुर्खता पूर्ण और अन्धविश्वासी विश्वासों और रीती रिवाजो के कारण हंसी के पात्र बने या खुद ही उन अज्ञानता का मजाक उड़ाने लगे तो आम भारतीय जो धर्म गुरुओ के शिकंजे में फसा था उसमें हीन भावना पैदा होने लगी। तब धर्म गुरुओ ने और जो पश्चमी भाषा का ज्ञान रखते थे पर थे रुदीवादी उन्होंने भारतीयों को इससे बच निकालने का एक तरीका अपनाया जिससे उनकी जनता पर पकड़ भी बनी रहे और भारतीओ में हीन भावना भी कम हो जाये।

यह रास्ता था की हर पश्चिमी वैज्ञानिक अविष्कार को धर्म पुस्तको में ‘पहले से ही ‘ दर्ज कर दिया जाये। अपने अवैज्ञानिक, रुदीवादी, अन्धविश्वासी रीतिरिवाजो को ‘ वैज्ञानिक’ होने का कवर पहना दिया जाए।
सिंदूर लगाने, चोटी रखने, व्रत- उपवास, तिलक, तीर्थ स्नान , यज्ञ आदि को बैज्ञानिक बतया जाने लगा। और तो और विमान, बारूद आदि के अविष्कार को भी धर्म पुस्तको में पहले से दर्ज बतया गया।

कुछ लोग तो इससे भी आगे बढ़ के यह सिद्ध करने लगे की ईश्वर कृत वेदो से ही सारा विज्ञानं लोगो तक पंहुचा है, दुनिया का सारा विज्ञानं ही वेदों में समाया हुआ है।
तो उनकी इन बातो से मन में पहला प्रश्न यह उठता है की यदि धर्म पुस्तको में विज्ञानं था तो भारतीय अब तक कर क्या रहे थे? यदि वास्तव में ही वेदों में ही सारा विज्ञानं समाया हुआ था तो उसे पढने और भाष्य लिखने वालो ने इस बैज्ञानिक अविष्कार क्यूँ नही किया?

एक बात यह भी फैलाई जाती है की पश्चमी देश के लोग हमारे वेद ले गए और उनको ही पढ़ के वो लोग खोज करने में सफल हुए।
कितना बड़ा असत्य है यह,यदि वेदों में सच मुच विज्ञानं था तो क्या अब तक जितने भी वेद भाष्यकार हुए थे वह सब मुर्ख थे की उन्हें वैज्ञानिक फार्मूलो का पता ही नहीं चला?या फिर पश्च्यात लोगो को कोई चमत्कारिक चीज मिल गई जिससे उन्होंने वेदो के विज्ञानं को खोज लिया?
आज जब वेद आसानी से उपलब्ध हैं तो कोई भी इन्हें पढके यह पता लगा सकता है की कितना वैज्ञानिक हैं वेद। यदि कोई वेदों का ज्ञात मुझे बता सके की वेद के किस शब्द का अर्थ बारूद, मोबाइल, टीवी, ए सी ,ट्रक, हवाई जहाज, मोटर साईकिल, फ्रिज,कूलर आदि उपकरण है?

वेद कितने वैज्ञानिक हैं इसके कुछ उदहारण देखिये।
ऋग्वेद में सूर्य को घूमता हुआ बताया गया है, सूर्य के रथ में सात घोड़े बंधे हैं।
‘सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य’ (ऋग्वेद, मंडल 1, सूक्त 50, मन्त्र 8)
अर्थात- सर्वप्रकाशक सूर्य, हरित नाम के साथ घोड़े रथ में तुम्हे ले जाते है

यह आज हर कोई जानता है की प्रथ्वी घुमती है , परन्तु वेदों में यह स्थिर है
” य: प्रथ्वी ………. जनास इंद्र: ” ( ऋग्वेद, 2/12/2)
अर्थात- हे मनुष्यों जिसने कांपती हुई प्रथ्वी को स्थिर किया वह इंद्र है

ऐसे कपोल काल्पनिक ‘ विज्ञानं’ और भी हैं पर अभी उदहारण के लिए इतना ही। तो कहने का अर्थ यह है पाठक स्वयं पढ़ सकते हैं की ईश्वर कृत वेद कितने ‘वैज्ञानिक’ थे।

मित्रो,मेरा उद्देश्य यह जताने का बिलकुल भी नहीं है की भारतीय विज्ञान में प्रतिभा हीन थे , निश्चय ही वह महान चिन्तक और प्रतिभा सम्पन्न थे जिनका मैं बहुत सम्मान करता हूँ।
परन्तु धर्म और विज्ञान दोनों एक दुसरे के विपरीत हैं , इस तरह से धर्म में विज्ञानं घुसा देना उचित नहीं है । आज उसी विज्ञानं का सहारा लेके अन्धविश्वास और रूडीवाद बढाया जा रहा है जिसका विज्ञानं हमेशा से दुश्मन रहा है।
धर्म गुरु उसी विज्ञानं का सहारा लेके अपना जाल और मजबूत करने पर लगे हुए हैं जिन वैज्ञानिक अविष्कारको कभी उन्होंने जहर दे दिया था ।
हमें उनके इस जाल को काटना होगा ताकि समाज अन्धविश्वास मुक्त हो सके ।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

7 thoughts on “क्या वेदो में विज्ञान है?

  • ५९४.सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य ।

    शोचिष्केशं विचक्षण ॥८॥

    हे सर्वद्रष्टा सूर्यदेव! आप तेजस्वी ज्वालाओ से
    युक्त दिव्यता को धारण करते हुए सप्तवर्णी किरणो रूपी अश्वो के रथ मे सुशोभित होते
    हैं॥८॥

    संस्कृत को सीखें पहले तब व्याख्या करें वेदों की…व्यर्थ में उपहास का पात्र ना बने …निजी स्वार्थ के लिए वेदों का अपमान उचित नहीं

  • सचिन परदेशी

    बहुत मार्मिक वार करता आपका लेख हर धर्म ग्रंथो के दावेदारों की पोल खोलता है ! विज्ञान का विरोध करने के लिए पहले जो जिन धर्मग्रन्थो का हवाला दिया करते थे वही अब उसमे विज्ञान की जड़ें ढूँड रहे हैं ! और इसमे कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता ! जाकिर नाइक भी दुनिया के विज्ञान विदों के सामने परिवर्तन को सिरे से नकारने वाले कुरआन की वैज्ञानिकता सिद्ध करने का दावा किये घूमता है ! जब की परिवर्तन ही विज्ञान की नीव है ! धरती को गॊल साबित करने वाले गालिलियो को जान से मारने वाले बाइबल के नुमाइन्दे अपने आप को आज मॉडर्न दिखलाने में सबसे आगे हैं ! हिन्दू भी वर्ण व्यवस्था में छुद्रों के अस्वच्छ कार्यों की वजह से उनसे दूरी बनाना अस्पृश्यता के जन्म का वैज्ञानिक कारण साबित करने में जुट जाते हैं ! विज्ञान का दूसरा नाम ही बगावत है जो हर प्रस्थापित तत्व के खिलाफ की जाती है ! देखा जाए तो हर धर्म या उसके ग्रन्थ दुसरे धर्म या उनके ग्रंथो से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बगावत का ही नतीजा है ! और इस हिसाब से जरुर ये अपने अपने धर्म को वैज्ञानिक कह सकते हैं !

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी बात अपनी जगह सही है. लेकिन वेदों में भी विज्ञान है, यह बात अनेक लेखकों ने अनेक प्रकार से सिद्ध की है. हो सकता है कि उनमें कुछ विवादास्पद तथ्य हों, लेकिन इससे उनकी अवैज्ञानिकता सिद्ध नहीं होती. वेदों में विज्ञानं सबको नज़र नहीं आता, केवल उनको ही नज़र आता है, जो उसे उस दृष्टि से देखते हैं.
    वेदों में वैज्ञानिक सत्य रूपकों के माध्यम से कहे गए हैं, जिनका अर्थ हम निकल भी सकते हैं और नहीं भी. जैसे ‘सूर्य के रथ को सात घोड़े खींच रहे हैं’ इस बात को यों समझना चाहिये कि सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं. यह एक वैज्ञानिक तथ्य है. अगर वेद अवैज्ञानिक होते तो यह संख्या कम या अधिक भी हो सकती थी. इसी तरह अन्य तथ्यों को समझने की कोशिश करनी चाहिए.

    • केशव

      सिंघल साहब ,रुपको से वैज्ञानिक फार्मूले बनते हैं क्या?
      यदि सात घोड़ो को सात रंग मने जाये तो घोड़ो का नाम हरित है । पर रंग अलग अलग होते हैं क्या उन्हें अलग रंगों के नाम नहीं पता थे?

      • विजय कुमार सिंघल

        केशव जी, आप अपनी स्थायी प्रवृत्ति के अनुसार ही बाल की खाल निकाल रहे हैं. वेड कोई विज्ञान की पाठ्यपुस्तक नहीं है, बल्कि एक ज्ञान कोष और धर्म ग्रन्थ है. उसमें विज्ञान सांकेतिक रूप में है. उसमें विज्ञान के फार्मूलों की आशा करना व्यर्थ है. धन्यवाद.

        • सचिन परदेशी

          जी विजयजी ! चलो माना की विज्ञान वेदों में सांकेतिक रूप में है लेकिन जो स्पष्ट रूप में लिखा है की छुद्र इश्वर के कमर के निचे मतलब पाँव से पैदा हुवे हैं ब्राह्मण सर से क्षत्रिय सीने से आदि बाते कैसे वैज्ञानिक होगी ? एक ही किताब में दो विरोधाभासी बातें कैसे ??

          • विजय कुमार सिंघल

            ऐसा वेद के किस मन्त्र में लिखा है? मुझे नहीं पता. मनुस्मृति में होगा.

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