आज वीरांगना लक्ष्मीबाई भी शहीद हुयी .(18 जून 1958 )
“खंजर की चमक खनक तलवार की
खौफ से जीता था दुश्मन सदा जिसके वार से
कांपते थे दिल ..डोलती थी सत्ता जिसके नाम से
गुडिया नहीं भायी उसको चूड़िया न सुहाई वक्त को
शब्द जो बोलती थी तलवार से तौलती थी
बंदूक भाला बरछी सखी दोस्त बन चले थे
था घुड़सवारी शौक .. वीरबाना जिसका पर्याय हो चले थे
सन सत्तावन को रास नहीं था ..जीवन उसका छीन लिया
कैसे जीती परतंत्र होकर स्वतंत्र मौत को बीन लिया
रणभेरी बजती भुजा फडकती और सुलगती आग सीने में थी
लक्ष्मीबाई..गर्वित हम ,तुम जन्मी भारतभूमि में ,
नमन कोटिश: प्रथम वनिता को …जीने की सीख सिखा गयी ,,
जीना मरना रह स्वतंत्र …पाठ स्वतंत्रता सिखा गयी ..
हो गुजरी वो जिस पथ से पुष्प स्वतन्त्रता के खिला गयी …
आने वाली पीढ़ी को भी बलिदानी राह दिखा गयी
श्रृंगार चूड़िया कब भायी हाथो में बचपन से भाला कृपाण संग तलवार जो आ गयी
करूं नमन कितना भी ,कम हैं …
स्वतंत्रता की दीवानी खुद रणभेरी बजा गयी
डरी मौत से कभी नहीं वो चिता को भी भा गयी .
रक्त से कैसे लिखते हैं ” देशप्रेम गाथा “सारी दुनिया को बता गयी -“— विजयलक्ष्मी
कोटिश:नमन
महान वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई पर लिखी यह कविता बहुत अच्छी लगी. उनके शौर्य को शत-शत नमन !
बहुत अच्छी कविता . १८५७ की शूरबीर देवी .