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आज मुसलमान ही मुसलमान का दुश्मन क्यों बना है?

अजीब नज़ारा है. जिस इस्लाम को भाईचारे और समानता की मिसाल के रूप में पेश किया जाता है, आज उसी इस्लाम को मानने वाले एक दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए हैं. दुनिया के किसी भी देश में देख लो, जहां भी मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है, वहीँ आज सबसे अधिक अशांति है. भारत ही नहीं, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईराक, ईरान, मिस्र, सीरिया, लीबिया, लेबनान, उजेब्किस्तान, चेचेन्या, नाइजीरिया, सोमालिया….. लम्बी सूची है उन देशों की, जहां आज मुसलमान ही मुसलमानों के खून का प्यासा बना हुआ है और अपने विरोधियों को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार रहा है.

आखिर ऐसा क्यों है? आपस में एक दुसरे के खून से होली खेल रहे इन मुसलमानों में आखिर ऐसा क्या मतभेद है कि उसका समाधान रक्तपात और सामूहिक जनसंहार के बिना नहीं किया जा सकता? सुन्नी, शिया, कादियानी, कुर्द, बहाबी, पठान … इन फिरकों और समुदायों में इतना अधिक मतभेद कैसे पैदा हो गया? पंथ दूसरे धर्मों में  भी हैं. हिन्दुओं में ही सैकड़ों पंथ हैं, ईसाईयों में भी रोमन, प्रोटोस्टेंट आदि अनेक पंथ हैं, पर उनमें कभी खून खराबा होते नहीं देखा गया, न सुना गया. फिर इस्लाम में ही ऐसा क्या है कि उसमें ऐसा हो रहा है?

मेरे एक विद्वान मित्र इसे ‘मूल की भूल’ बताते हैं. उनके कहने का तात्पर्य है कि इस्लाम की सोच में ही कोई बुनियादी गलती है, जिसके कारण मुसलमान न तो स्वयं चैन से रह सकते हैं और न दूसरों को चैन से रहने दे सकते हैं. अनेक विचारकों ने इसकी व्याख्या ‘दारुल-इस्लाम’ और ‘दारुल-हरब’ जैसी अवधारणाओं के माध्यम से की है, लेकिन ये अवधारणायें तो तभी लागू होती हैं, जब मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों का संघर्ष हो. वह भी होता है, लेकिन वर्तमान रक्तपात इस श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि यहाँ तो मुस्लिम ही मुस्लिम की जान का दुश्मन बना हुआ है.

इस्लामी विद्वान ‘इस्लाम’ शब्द का अर्थ ‘शान्ति’ बताते हैं, परन्तु वास्तव में इसका अर्थ है- ‘समर्पण’ अर्थात् अपने मन, बुद्धि, विवेक, विश्वास सबका समर्पण. किसके प्रति? कुरआन और मुहम्मद के प्रति. जो ऐसा नहीं करते उनको कोई भी मुसलमान गैर-मुसलमान बताकर अपना जानी दुश्मन मान सकता है. यही आज हो रहा है. इस्लाम के जितने भी पंथ हैं वे स्वयं को सच्चा मुसलमान और बाकी सबको झूठा मुसलमान भी नहीं, बल्कि गैर-मुसलमान बताते हैं.

बिडम्बना यह है कि कुरआन की आज्ञा के अनुसार ही सभी गैर-मुसलमानों को मुसलमान बनाना अथवा उनको समाप्त कर देना हर मुसलमान का धार्मिक और मौलिक कर्तव्य है. यह आदेश ही आज के संघर्षों और रक्तपात का मूल कारण है. इसीलिए मेरे मित्र इस्लाम को ‘मूल की भूल’ कहते हैं. डॉ अली सिना जैसे विचारक ने अपनी वेबसाइट फेथ फ्रीडम डॉट कॉम में स्पष्ट लिखा है कि यदि कोई मुसलमान कुरआन के आदेशों का सही-सही पालन करेगा तो वह निश्चित ही जेहादी आतंकवादी बनेगा.

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कुरआन के ऐसे आदेश ही मुस्लिमों को शांतिपूर्वक रहने और दूसरों को रहने देने में बाधक हैं. इसके बजाय यदि उनको सहिष्णुता का उपदेश दिया जाता तो शायद इस्लामी आतंकवाद इतना भयावह रूप न लेता. इसमें सुधार करने का काम इस्लामी विद्वानों और उन सबका है जो इस्लाम को बचाना चाहते हैं. लक्षण तो ऐसे नज़र आ रहे हैं कि इस्लामी आतंकवादी न केवल स्वयं नष्ट हो जायेंगे, बल्कि अपने साथ इस्लाम को भी ले डूबेंगे.

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

2 thoughts on “आज मुसलमान ही मुसलमान का दुश्मन क्यों बना है?

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अगर मुसलमान ही मुसलमान के खून का पियासा हो गिया है तो गैर मुसलमानों से मुहबत हो ही नहीं सकती . आज इस्लाम दुनीआं में बदनाम हो रहा है , कारण यह है जो मुल्ला धर्म का पाठ पडाते हैं वोह इतने कट्टर हो गए हैं कि जन्नत के सर्टीफिकेट ही दिए जा रहे हैं . गैर मुस्लिमों को दुश्मन कह रहे हैं . अब बोतल का भूत बोतल से बाहिर आ गिया है , अल्ला बचाए !!

    • विजय कुमार सिंघल

      बिल्कुल सही कह रहे हैं आप गुरमेल जी. इस्लाम के भाईचारे की कलई खुल चुकी है.

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