कविता : बेचारी की बेचारी रही
झाँसी की रानी थे हम तुम नौकरानी बना दिए,
फूलों पर रक्खोगे यह कह हमें प्यार का झांसा दिए||
मौन रहते हैं तो कहते हो मुहं हम फूला लिए,
बोलते हैं तो कहते हम घर सर पर क्यों उठा लिए||
बना भोजन करती इन्तजार तेरा तो कहते हो क्या हैं यह नौटंकी,
खा-पीकर सोने चली तो कहते हो क्या पत्नी हमको मिली||
चार फेरो में आगे रख समाज में मान हमको दिया,
घर में हर महत्वपूर्ण फैसलें में आगे रह अपमान ही किया||
माँ-बाप का नाम धोखे से भी ले लो कभी जबान पर गर,
हम धमकी देते हैं यह कह करते हो व्यंगबाण दिन भर||
केही विधि बक्शोगे हमको जरा तुम समझा दो हमें,
नहीं करेगे कुछ ऐसा दे दो अपने घर में पनाह तुम हमें||
—— सविता मिश्रा
अच्छी कविता.