मन आज फिर डूब गया!!
मन आज फिर डूब गया
यादों के अंधियारे जंगल में
फिर उतरा है बीती के दलदल में
आँखों में नीर भर आया
शिथिल अंग पड गए
फिर कोई घाव उभर आया
भावना के भीषण आवेग में
बाँध दुखो का टूट गया
पथ में फिर अँधियारा छाया
फिर मेरा मन कोई लूट गया
बिखरी बिखरी जैसे
सूखे पीपल की सूखी डालें
ऐसे सूखे शब्द मेरे और
स्मृतियों के उधड़ी उधड़ी छालें
जैसे कोई तोड़ रहा हो
पेड़ो पर लगे मीठे फल
मैं भी छाँट रहा हूँ ऐसे ही
जीवन से कुछ मीठे पल
सुस्ताया सा हार सा मन
कुंठाओं से ऊब गया
मन आज फिर डूब गया!!
________सौरभ कुमार दुबे
सौरव जी , मन की वेदना को उजागर किया है , मुआफ करना पंजाबी हूँ और सही लफ्ज़ मिल नहीं रहे . फिर भी कहूँगा , आप की इस आयु में ऐसा हो ही जाता है , जरा optimist बनिए , बहारें फिर भी आएँगी .
बहुत सुन्दर
अच्छी कविता ! मन की भावनाओं को आपने सच्चाई से प्रकट किया है !