मैंने हार नहीं मानी है
मैंने हार नहीं मानी है
ये रण जीतने की ठानी है
क्षण क्षण ऐसे बीता है
जैसे जीवन घट रीता है
हारी है दुर्भावनाएं सारी
बस मन का साहस ही जीता है
अब पीछे भूल से हट जाना भी
सपनो के संग बेमानी है,
मैंने हार नहीं मानी है
पथ मेरा अविरल अटल रहा
आँखों में ना कायरता का जल रहा
सदैव प्रेरणा देता जीवन मुझको
मैं भले गिरा और विफल रहा
पर फिर फिर उठ उठकर
मैंने भी साहस की कीमत पहचानी है
मैंने हार नहीं मानी है
____सौरभ कुमार दुबे
बहुत बढ़िया .
सौरव जी , ऐसा लगता है जैसे यह कविता मेरे लिए लिखी गई है किओंकि optimisum ही मेरा जीवन का लक्ष्य है जिस के सहारे आज मैं जिंदा हूँ .
ji abhar ji
बहुत अच्छी कविता, भावनाएं भी श्रेष्ठ हैं. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत !