”’रणभूमि तुम्हे पुकार रही ,,,
अर्जुन उठो आगे बढ़ो
रणभूमि तुम्हे पुकार रही
धर्म पर संकट है छाया
दुर्योधन ने पाँव पसारे,
पितामह लाचार हुए सब
राजा बने धृतराष्ट्र है सारे,
और दुशाषन चीर खेंचता
याज्ञसेनी हाथ पसार रही,
रणभूमि तुम्हे पुकार रही!
कर्ण अधर्म के पक्ष खड़ा है
धर्मराज सब हार गया,
भीम क्रोध से जल रहा है
शकुनि बाजी मार गया,
और नकुल सहदेव हैं सहमे
माता कुंती तुम्हे निहार रही,
रणभूमि तुम्हे पुकार रही!
आओ प्रत्यंचा आज चढ़ाकर
अधर्म का भूमि से नाश करो,
मोह की पट्टी आँखों से खोलो
विधर्मियों का विनाश करो,
तुम प्रचंड प्रखर प्रबल अटल हो
तुमसे ही आशा बारम्बार रही,
रणभूमि तुम्हे पुकार रही!
_____सौरभ कुमार दुबे
धन्यवाद जी
कविता पड़ कर मज़ा आ गिया . सौरव जी आप अच्छा लिखते हैं .
अच्छी कविता.