कविता

”’रणभूमि तुम्हे पुकार रही ,,,

अर्जुन उठो आगे बढ़ो
रणभूमि तुम्हे पुकार रही

धर्म पर संकट है छाया
दुर्योधन ने पाँव पसारे,
पितामह लाचार हुए सब
राजा बने धृतराष्ट्र है सारे,
और दुशाषन चीर खेंचता
याज्ञसेनी हाथ पसार रही,
रणभूमि तुम्हे पुकार रही! 

कर्ण अधर्म के पक्ष खड़ा है
धर्मराज सब हार गया,
भीम क्रोध से जल रहा है
शकुनि बाजी मार गया,
और नकुल सहदेव हैं सहमे
माता कुंती तुम्हे निहार रही,
रणभूमि तुम्हे पुकार रही!

आओ प्रत्यंचा आज चढ़ाकर
अधर्म का भूमि से नाश करो,
मोह की पट्टी आँखों से खोलो
विधर्मियों का विनाश करो,
तुम प्रचंड प्रखर प्रबल अटल हो
तुमसे ही आशा बारम्बार रही,
रणभूमि तुम्हे पुकार रही!

_____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

3 thoughts on “”’रणभूमि तुम्हे पुकार रही ,,,

  • सौरभ कुमार दुबे

    धन्यवाद जी

  • कविता पड़ कर मज़ा आ गिया . सौरव जी आप अच्छा लिखते हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता.

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