मन की कविता
क्या कहें
कभी लहरें जैसे उमड़ती हैं सागर में
कभी बादल जैसे बिखरते हैं अम्बर में
ऐसे ही कोई सैलाब सा उठता है विचारो का मन में
कभी आंधी कभी तूफ़ान से शब्द फूट पड़ते हैं
कभी विचारो के घट यकायक टूट पड़ते हैं
मन तो मन है
मन का क्या है इसकी अपनी उलझन है
मन के सवाल हैं
मन के जवाब हैं
इसके अपने उलझे हिसाब किताब हैं
मन की कविता हमेशा अधूरी है
मन से मन की बड़ी मजबूरी है
आओ मन को मनाये
कुछ गुनगुनाएं
मन का कमल फिर हम खिलाये
________सौरभ कुमार दुबे
वाह ! बहुत खूब !!