कविता

संवेदना

गहरे सिंधु सा गहराता जीवन 
मन की नौका खाए हिलोर
भावुकता की भीषण लहरों में 
दिखता नहीं आशा का छोर 

पथ पर जिसने देखें हैं फूल 
कैसे जाने क्या होते शूल 
रंग उड़ गया जिसके जीवन का 
उसके हाथों रह जाती धूल

सब संवेदना मेरे मन की
रह गयी वेदना इस जीवन की
कपोल कल्पना झूठी थी सब
सुधि न रही सुख अर्जन की

कभी स्नेह नहीं माँगा था पर
मिला मुझे जीवन से बढ़कर
अब फिर ढूंढ रहा उस क्षण को
जिसे पाया था मैंने मर मरकर

सपने सारे राख हो गए
मिटटी में मिल खाक हो गए
नींद उड़ गयी रातो के संग
शत्रु जुड़ जुड़ लाख हो गए

पथ पर पुष्प मिले नहीं थे
कभी सहसा ही खिले नहीं थे
हमने पत्थर ही पत्थर थे तोड़े
पर्वत थे वो किले नहीं थे

हार मिली तो आंसू ना बोये
कभी टूटकर नहीं थे रोये
किन्तु स्वजनो ने हाथ जो छोड़ा
हम तिमिर में जाकर खोये

इसी तिमिर ,तम से उभरेगी
नए पथ की उज्ज्वल भोर
भावुकता की भीषण लहरों में
दिखता नहीं आशा का छोर,,!!

                                                                _____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “संवेदना

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर कविता !

Comments are closed.