****पाखंड का नाश करें****
जड़ से इसे विनाश करें
भवजल में फंसे हुए साथी
जो आगे बढ़ ना पाये हैं
उन्होंने कपोल कल्पना के
भगवान सदा बिठाये हैं
हर ठौर ठौर पर कोई इंसान
लूट रहा है भक्ति को
चुरा रहा सामर्थ्य हमारा
ह्रदय विराजित शक्ति को
धर्मपथ धुंधलाता जाता
आओ इसे प्रकाश करें
पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें!!
तुम सत्य सनातन के अनुयायी
राम कृष्ण की पूजा करते
सीता राधा को माता कहते
फिर काम क्यों दूजा करते
श्रद्धा विश्वास में केवल बह जाते
इस चक्रव्यूह को समझ ना पाते
हो मानव मानव के आगे
किस अधिकार से शीश झुकाते
आओ अपने अंतर से पूछें
कहाँ हरिहर वास करें
पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें!!
दुविधाएं आती हैं आएं
धर्म द्रोह हम नहीं सहेंगे
मानव को मानव समझेंगे
इसे राम न कृष्ण कहेंगे
पथ उजियारा आज करेंगे
प्राणो में नवक्रांति भरेंगे
सत्य सनातन को पूजेंगे
दुःख क्लेश हमारे स्वतः हरेंगे
कण कण से पूछो क्षण क्षण से
क्यों ना उठें प्रयास करें
पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें!!
______________सौरभ कुमार दुबे
बिलकुल ठीक कहा आपने भारत को इस बीमारी से उबरना होगा!!
बहुत अच्छी कविता. पाखंड और अन्धविश्वास हिन्दू समाज की बीमारियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म को अन्दर से खोखला कर रही हैं. इनका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए.