नयी क्रांति लानी होगी!!
ये कविता मैंने तब लिखी थी जब दिल्ली में निर्भया के साथ दुष्कृत्य हुआ था और देश में एक क्रोध की लहर दौड़ पड़ी थी, राष्ट्रवादियों ने इस काण्ड का अपने अपने स्तर पर विरोध किया!! कुछ ने इंडिया गेट पर मोमबत्तियां जलाईं, किन्तु क्या मोमबत्तियों के जलने से कोई क्रांति उत्पन्न हुयी है आजतक तब मेरे विह्वल और दुखित मन में ये विचार फूटे—
जल गयी चिता किसी के जीने की चाहत की
हाँ ले रही होगी सांस सत्ता आज राहत की
हारकर जीवन की बाजी सबक बोलो क्या सिखा गयी
देखो आँखों के सामने सच भारत का दिखा गयी
वो माँ कितनी रोती होगी जिसने दोनों हाथो से था पाला
वो पिता कितना दुखी होगा जो बेटी का था रखवाला
अरे वेदना वो ही जाने जिसके ऊपर गुजरती है
हर बार क्यों नारी ही यहाँ हर्जाना भरती है
उन पाप के पुजारियों को सजा जो भी दी जाएगी
उससे बोलो एक जिंदगी कहाँ लौटकर आएगी
न्याय तो तब होगा जब शस्त्र ले खड़ा मानव होगा
रो रो अपने पाप भोगता हर एक दानव होगा
मोमबत्तियां जला जलाकर बोलो दुष्कृत्य कितने रोकोगे
साहस तुम्हारा तब दिखेगा जब खुद को इस आग में झोकोगे
आग नहीं अब ज्वाला और बत्ती नहीं मशाल जलानी होगी
प्रदर्शनों से काम नहीं अब नयी क्रांति लानी होगी
____________सौरभ कुमार दुबे
बढ़िया
बहुत ही अच्छे विचार …आपको बधाई रचना के लिए
aabhar
बहुत अच्छी भावनाएं. बहुत सुन्दर कविता.