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आईना भारत का

जिस दिन लेखनी से दर्द उभरेगा, सांसों से अंगारे बरसेगें, आंखों में आन्दोलन की आंधी चलेगी। और देश के भूंखे नंगे लोग अपना -अपना दर्द लेकर गली कूंचों में शोर मचाने लगेंगें तो समझ जाना कि फिर भारत वापस आने वाला है, ये सब हिन्दुस्तानी है, जो अब तक सोये हुये थे, इनके जमीर ने इनको धिक्कारा है तो अपने- अपने घरों से निकल पडे हैं, शायद इण्डिया को भगाना चाहते होगें, या फिर इण्डिया कों इंग्लैण्ड बनाना चाहते होगें।

बात उन दिनों की है जब पूरा भारतवर्ष गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था, आजादी सिर्फ नाम की ही जानते थे, रातो दिन सभी के आंखों से अश्को के धारे झर झर झरने की मानिन्द बहा करते थे, और रोज एक नये सबेरे के इन्तजार किया करते थे, नया सबेरा तो मिलता था परन्तु वह साथ मंे नया सितम भी लाता था। रोज – राज, नये -नये सितम सह- सह कर जब सभी लोग चूर- चूर हो गये तो सोंचने पर मजबूर हो गये, कि यह जवानी किस काम आयेगी, अगर इसी तरह लोगांे के साथ होता रहा तो एक दिन भारत का नामों निशान इस दुनिया से मिट जायेगा और अपने ही घर मंे बन्धुवा मजदूर की जिन्दगी बीतानी पडेगी, उस समय लोगों ने सोंच बदल ली और सोंच लिया कि चलों जुर्म की जलती ज्वाला में कूंदेगें, या तो जुर्म को मजबूर होकर भागना पडेगा या फिर जवानी थक कर मिट जायेगी, या तो गुलामी का विस्तार हो जायेगा या फिर विनाश हो जायेगा।

वास्तव में उस उक्त जो देश से प्रेम करते थे उनकी नशों में दौडा रहा खून गर्म होनें लगा और जवानी जोश मारने लगी, भारत में फैली गन्दगी को धोनें के लिये भारतवासियों ने खून की नदियां बहा दी, आखिर एक दिन वो! ले ही आये जिस दिन का सपना देखा था! उस दिन सभी के दिलों में एक अन्जाना दर्द हिलोरे मारने लगा इस बात को लेकर कि जिन- जिन लोगों के लहू से भारत की धरती को सींच कर हरा किया गया आज वही लोग हरियाली देखने के लिये हमारे बीच मंे नही हैं।

धूल भरी आंधी मेें गुम भारत की धरती को आजादी के बाद एक नव जातशिशु की भांति पूरे देश को भारत के जवानों नेे देेश के कर्ण धारों को भारत को शौंप दिया, प्रसव पीड़ा से तड़प – तड़प कर जिस माॅ ने भारत को जन्म दिया था आज वो माॅ प्यार दुलार करनें के लिये नही है, इन सब लोगों का क्या, न तो दर्द सहा और न ही खून की नदियों को बहते हुये देखा, इनको लहलहाती हुई फसल मिल गयी तो ये देश के कर्णधार उन किसानों को ही भूल गये जो किसान हरित क्रान्ति जागीर में दे के चले गये। आज उनकी जागीर के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, ऐसे घिनौने कार्य को अन्जाम दिया जा रहा है कि अगर आस्मांन से उनकी आत्माएं इस मंजर को देखती होगी तो रोने पर विवश हो जाती होगी कि यह…सब कैसे हो गया, मैने तो बेला चमेली, मोगरा के पौधे लगाये थे, यह कैकटस, बबूल, कांटों की झांड़िया कैसे उग गयी।

भारतवासियों को आजादी क्या मिली वह अपने आगे पीछे के सारे दर्द भूल गये, क्या कीमत चुका कर इस देश को दल-दल से निकाल कर बाहर लाया गया, देश के क्रान्तिकारियांे ने आजादी की कुवां खोद कर स्वच्छ जल तो निकाल लिया परन्तु खुद जल का स्वाद नही ले पाये, आज जो लोग कहतंे है कि यह देश हमारा है वही लोग जल को गन्दा करनें में तुले हैं, आज का मंजर तो यह हो गया है कि आजादी का कुवां तो प्रत्यक्ष रूप से सभी को दिखाई दे रहा है, परन्तु पानी का रंग कुछ बदला – बदला नजर आ रहा है, जल से आक्सीजन को अलग कर दिया गया है यानि कि सभ्यता, संस्कार, आदर, सम्मान को निकाल कर फेंक दिया गया है और उसे पूरी तरह से वाटर बना दिया गया है, जैसे ही जल को वाटर बनाया गया तुरन्तु भारत इण्डिया बन गया, हिन्दूस्तानी आम आदमीं बन गया, और अपने – अपने अधिकारों के लिये इधर- उधर दौड़ने लगा आज भी दौड रहा है, किस को कहां तक दौडना है कुछ अता पता नही है, दौड़ भी आज इतनी जालिम हो गयी है कि अपने ही लोगों के सीने पर पैर रख कर निकल जातें है आह तक नही सुनते।

भारत तो सिर्फ शब्दों  तक सिमट कर रहा गया है, यहां तो इण्डिया का विस्तार कर रहें है, और विस्तार भी ऐसे कर रहंे है कि जहां से देश की खुशहाली निकलने का उद्गम माना जाता है वहां पर कंकरीट के जंगल उगाये जाये रहें है, झोपडी देख कर आज के लोग घिन्नातें है, पत्थर के मकानों में रहते -रहते लोगों के दिल भी पत्थर के होनंे लगंे है, सोंचने समझने की क्षमता का नाश होता जा रहा है, शायदी इसलिये बार बार देश मेें शर्मनाक घटनाओं का विस्तार हो रहा है, इण्डिया मंे आज कल के माता पिता मौम डैड बनते जा रहे हैं, पिता पुत्र तो कहीं दूर दूर तक देखने को नही मिल रहे है, पत्नी जबसे वाईफ हुई तबसे परिवार मेें कलह की कली खिली, ऐसे कली खिली की उसकी खुशबू से परिवार तुरन्त छिन्न भिन्न होने लगे अपने अपनों से ऐसे दूर- दूर ऐसे होनंे लगे कि खून के रिस्तों की कोई कदर ही नही रह गयी।

हम सभी चाहतें है कि भारत को फिर सोंने की चिड़िया बना दिया जाये परन्तु क्या करे सोनंे का भाव इतना उंचा हो गया है कि देश ही नही! समाज ही नही! गाँव के गली कूंचों में रहने वालों को भी सोंना चाहिए अभी तो सिर्फ इण्डिया बनाया गया है और माना की उसे खोखला बडे पैमाने पर किया जा रहा है, परन्तु है तो, अगर सोनें की चिड़िया बना दिया जाये, तो एक दिन मलेशिया से उडे विमान की तरह ऐसे लापता हो जायेगा कि दुनियां की कोई भी जांच की टीम इसे ढूंढ नही सकती।

राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

One thought on “आईना भारत का

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. आपने खूब आइना दिखाया है.

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