आस्तिको का झूठा दावा-ईश्वर और उसकी सृष्टि परफेक्ट है
आस्तिक मित्र ईश्वर होने का प्रमाण देने के लिए एक तर्क यह भी देते हैं की ईश्वर ने यह सृष्टि बनाई है , ईश्वर स्वयं तो सौ फीसदी परफेक्ट है ही उसकी बनाई यह दुनिया भी सौ प्रतिशत परफेक्ट हैं ।
परन्तु आस्तिको का यह तर्क भी तर्कहीन है , अव्वल तो आज तक किसी ने ईश्वर को देखा ही नहीं अत: यह कहा ही नहीं जा सकता ही ईश्वर कितने प्रतिशत सही है और कितने प्रतिशत गलत।
ईश्वर के विषय में ऋग्वेद में कहा गया है ” यह विश्व जिससे उत्पन्न हुआ है उसे कौन जानता है?(10/129/6)
सृष्टि के विषय में कहा गया है ‘ यह विशेष सृष्टि जिससे उत्पन्न हुई ,पता नहीं वह इसे धारण करता है या नहीं?(10/129/7)
इन दोनों मंत्रो से यह साबित होता है की न तो ईश्वर को कोई जानता है और न ही यह तय है की सृष्टि को ईश्वर धारण करता है ।
फिर भी यदि थोड़ी देर के लिए आस्तिको की बात बड़ी करते हुए यह माना जाए की ईश्वर 100% परफेक्ट है और उसने अपनी सृष्टि 100% सही बनाई है तो भी यह दावा सत्य नहीं है । ईश्वर की बनाई पृथ्वी 100% परफेक्ट नहीं है ,इसमें सैकड़ो कमियाँ है।
1-जैसे हम जानते हैं की प्रथ्वी आग का गोला थी और ठंढे होने पर इसपर जीवन आरम्भ हुआ । यदि हम यह माने की पृथ्वी ईश्वर द्वारा बनाया हुआ घर है तो जिसपर हम निवास करते हैं ,तो ईश्वर ने सीधा सीधा पृथ्वी को आज जैसा ही क्यों न बना दिया? आग का गोला बना के लाखो साल बाद इंसान को क्यों बनाया? ईश्वर ने सीधा सीधा रहने लायक बना के इंसान की उत्पत्ति क्यों नहीं की?
2- पृथ्वी 100% परफेक्ट नहीं है यंहा कंही समुन्द्र ही समुन्द्र है, तो कंही रेत ही रेत तो कंही जंगल ही जंगल। जापान में जंहा रोज भूकंप आते हैं तो अरब जैसे देशो में पानी ही नहीं जबकि चेरापुंजी में वर्षा ही वर्षा होती है । कंही लोग सूखे से मर रहे हैं तो कंही लोग बाढ़ से , कंही ज्वालामुखी फटते रहते हैं । कंही हजारो फिट खाइयाँ हैं तो कंही हजारो फिट पहाड़ जंहा रहना संभव नहीं। कंही बिजली गिरने से लोग मारे जाते हैं,क्या मारे जाने वाले लोग ईश्वर के बच्चे नहीं हैं?
3- आस्तिको का तर्क है की सभी चीजो का रचियेता ईश्वर है और उसकी प्रत्येक रचना का कुछ उद्देश्य होता है ,तो हैजे, एड्स, केंसर आदि के सूक्ष्म जीवाणु को किस उद्देश्य से बनाया है ईश्वर ने?
मरे हुए बच्चो को किस उदेश्य से पैदा करता है ईश्वर?
जैसा की सभी जानते हैं की मानव शरीर में लगभग 200 रचनाये ऐसी हैं जिनका मनुष्य के लिए कोई उपयोग नहीं जैसे अपेंडिक्स , अब यदि हमें ईश्वर ने बनाया तो ईश्वर कैसे यह मुर्खता बार बार करता जा रहा है और अनुपयोगी चीजो को बनता जा रहा है?
कैसा परफेक्ट ईश्वर है?
4- आस्तिक कहते हैं सूरज समय पर उगता है, प्रथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, 24 घंटे में अपना चक्कर पूरा करती है,ग्रहों का अपने परिक्रमापथ पर एक निर्धारति गति से घूमना आदि ईश्वर के नियम हैं।
पर, यह तर्क भी तर्कहीन है और आस्तिको के अल्पज्ञान का परिचारक है ।
गंभीरता से सोचने पर हम पाते हैं की प्रतिदिन सूर्य के उगने और अस्त होने में एक आध मिनट का फर्क रहता है ,फर्क इतना है की सर्दियों में राते 13 घंटे की तक की हो जाती है और इतने ही समय का दिन हो जाता है गर्मियों में ।
इसी प्रकार पृथ्वी कभी भी 365 दिन में सूर्य की परिक्रमा नहीं पूरी कर पाती है , समय घटता बढ़ता रहता है।
तो फिर यह कहना की सृष्टि ईश्वर के नियम से चल रही है सरासर मुर्खता है। एक प्रश्न और उठता है यंहा की यदि ईश्वर ने सृष्टि को नियमों से बाँधा हुआ है तो ईश्वर के लिए कौन नियम निर्धारित करता है?
मेरा यंहा कहने यह हरगिज अर्थ नहीं की पृथ्वी , सूर्य,चंद्रमा आदि मनमाने ढंग से जिधर मर्जी भागे जा रहे है पर आस्तिको के यह कहने का भी कोई अधिकार नहीं की कोई ईश्वर उन्हें किसी कठोर नियम के अनुसार चलने या रहने के लिए विवश किये हुए है ।
तो, प्रबुद्ध पाठक मित्रो आप देख सकते हैं की न तो तथाकथित इश्वर ही 100% परफेक्ट है और न ही उसकी बनाई रचनाये , इस तरह का भ्रमजाल आस्तिक लोग फैलाते रहते हैं ताकि उनके बाड़े की भेड़े कंही बहार न निकल जाए और उनका धंधा बंद हो जाए।
केशव ईश्वर, प्रकृति एवं आत्मा तीन मुलभुत तत्वों के गुण, कर्म और स्वभाव की अनभिज्ञता के कारण आप उलझ गए। ईश्वर सर्वज्ञानी एवं सत+चित + आनंद स्वरुप चेतन सत्ता हैं , आत्मा अलपज्ञ चेतन सत्ता हैं, प्रकृति जड़ सत्ता हैं। तीनों अनादि काल से हैं और रहेंगे। जिस प्रकार ईश्वर ने प्रकृति से सृष्टि को उत्पन्न किया हैं उसकी प्रकार पंच तत्वों और आत्मा के मेल से मनुष्य को निर्मित किया। निर्माण करने से सृष्टि और आत्मा के गुण वह तो नहीं बन सकते जो ईश्वर के गुण हैं। फिर व्यर्थ में क्यों उलझ रहे हो। अब मनुष्य कोई पाप कर्म करता हैं तो उसका दोष ईश्वर को थोड़े ही जाता हैं जिन्होंने मनुष्य को बनाया हैं। दोष तो मनुष्य का ही हैं। ऐसे ही प्रकृति में जड़ता के कारण स्वयं से कोई परिवर्तन नहीं हो सकता मगर जब ईश्वर की इच्छा होती हैं तब वह सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं वह भी एक नहीं असंख्य। इसलिए सृष्टि कैसे बनी, कब बनी, कब तक बनेगी यह कोई नहीं जानता केवल नासदीय सूक्त द्वारा वेदों में इस प्रश्न का उत्तर प्रश्नुत्तर शैली में मिलता हैं की ईश्वर इस प्रश्न का उत्तर जानते हैं। हर कार्य का कहीं से आरम्भ होता हैं कहीं पर अंत होता हैं। जब सृष्टि मनुष्य के रहने लायक हो जाती हैं तभी मनुष्य की उत्पत्ति होती हैं। इसलिए यह कुतर्क देना की पहले क्यों मनुष्य उत्पन्न नहीं होते बाद में क्यों होते हैं बचकाना हैं क्यूंकि इससे ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता। किसी भी कार्य को करने का तरीका होता हैं इसलिए जैसे वह कार्य सम्पन्न होगा वैसे ही होगा। उसमें आपकी तुच्छ बुद्धि कितनी उछल कूद मचा ले वह बदलने वाला नहीं हैं।बाढ़, भूकम्प, सुखा आदि प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य द्वारा प्रकृति के आवश्यकता से अधिक छेड़छाड़ के कारण होते हैं। केदारनाथ में तूफान और त्रासदी उसका प्रत्यक्ष उदहारण हैं। अपनी गलती का दोष ईश्वर को देना नितांत मूर्खता का प्रतीक हैं। बीमारी, व्याधि आदि वहीँ होती हैं जहाँ पर नियम का उल्लंघन होता हैं। एड्स व्यभिचार के कारण फैलता हैं। ईश्वर का स्पष्ट सन्देश हैं की अगर नियम तोड़ोगे तो फल भी भुगतना पड़ेगा। मृत बालक, जीवन में दुःख सब कर्म फल व्यवस्था के कारण हैं। अपने कर्मों का दोष ईश्वर को देना मूर्खता हैं।
केशव जी, आपके लेख के किसी भी तर्क में दम नहीं है. सब के सब कुतर्क हैं.
उदाहरण के लिए यह कहना कि मनुष्य के शरीर में लगभग २०० अंग ऐसे हैं जिनका कोई उपयोग नहीं है, सरासर अज्ञानता की बात है. शरीर का कोई अंग बेकार नहीं है, सबका कुछ न कुछ उद्देश्य और कार्य होता है. अगर कोई अंग काम में नहीं आ रहा है, तो यह मनुष्य की कमी है, उसके रचयिता की नहीं.
इसी तरह पृथ्वी कि विविधताओं को अपूर्णता के रूप में प्रस्तुत करना भी गलत है.आपको चाहिए था कि आप डॉ विवेक आर्य के लेखों में दिए गए तर्कों का उत्तर देते. उसके बजाय आप निरर्थक बातें कर रहे हैं.