कविता

कविता : तन्हाई में चाँद पर नज़र…

ठहर जाती है
जब कभी तन्हाई में
इस चाँद पर नज़र………….
रोजाना थोड़ा थोडा
टूटता ही दीख पड़ता है……
सब उसकी कलाएं समझते हैं 
नहीं समझते तो
उसका छन्न से टूट जाना……
धीरे धीरे पूरा
सफ़ेद वृत्त
खंड खंड होकर टूट जाता है….
एक किरच भर नहीं दिखता
पूरा का पूरा खो जाता है
फिर न जाने कहाँ से
कौन ढूंढता है
एक एक टुकडा जोड़ता है उसे प्यार से
और धीरे धीरे
फिर से बना देता है उसे पूर्ण वृत्त……
आशाओं से जगमगाता पूर्ण
तभी कहाता है
पूरनमासी का चाँद
बिलकुल वैसे ही
जैसे मैं टूटती हूँ
तुम्हारी प्रतीक्षा में
खंड खंड……..
फिर जोडती हूँ खुद को
उम्मीदों से खुद को
और बनाती हूँ
फिर से पूर्ण
कि तुम आओगे, जरूर आओगे…

……वत्सला

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