कविता : हर पल तेरी यादें, हैं सीने में आग लगाए
हर पल तेरी यादें हैं, रातो को तू ख्वाब में आये।
अबकी सावन कैसा आया, सीनें में है आग लगाये।।
गम का सागर कितना गहरा, बाहर है दुनिया का पहरा।
नीचे पत्थर की जमीं हैं, जिन पर मै अब तक हॅू ठहरा।।
कैसे लोग वो सोते होगें, शोला जो सीने में दबाये
हर पल तेरी यादें हैं, सीनें में है आग लगाये।।
कांटो की गलियों मेें चलते, दुनियां की रस्मों में जलते।
अब तक जितने गुलशन देखे, माली रोते ही हैं मिलते।
दुनियां के मेंले में देखो, वीरानापन लहराये
हर पल तेरी यादें हैं, सीनें में है आग लगाये।।
दीवाने सब राज है ठहरे, रस्म कोई हम जानें ना।
फतेह की राहों पर जाना है, कसम कोई हम माने ना।
कहने को शब ये ठन्डी है, रोज ये सबको जलाये।
हर पल तेरी यादें हैं, सीनें में है आग लगाये।।
अच्छी कविता !