ऐ मेरे वतन के लोगो…..!
कल दुकान में सी.एफ.एल बल्ब लेने गया था। दुकानदार ने उसकी कीमत मात्र पच्चीस रूपये बतायी तो आश्चर्य हुआ कि इस महँगाई में सौ रूपये की चीज़ पच्चीस रूपये में! कारण पूछने पर वह बोला- भाई साहब, यह ‘चायना मेड’ है इसलिए पच्चीस रूपये का है। मैंने पूछा इसकी कोई गारंटी तो जवाब मिला- ‘कोेई गारंटी नहीं।’ तभी अगला विचार मेरे मन में बिजली की तरह कौंधा कि सच है जो चीन हमारे लिए विश्वासघात का पर्याय है, उसका उत्पादन किस विश्वास के लायक हो सकता है।
इसी चीन ने सन् 1962 में ‘चीनी-हिन्दी-भाई-भाई’ कह कर हमारे पीठ मेें छुरा घोंपा था। जब चीन ने हमारे देश पर आक्रमण किया था तो दीपावली का त्यौहार मनाया जा रहा था। देश के जवान सीमा पर गोली झेल रहे थे। उस करूणा और दुःख भरे वातावरण में कवि प्रदीप, संगीतकार सी.रामचंद्रन और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर की संयुक्त प्रतिभा ने इस देश को यह अमर कृति दी थी- ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…’, जो आज भी भारतवर्ष में राष्ट्रीय पर्वों पर आरती की तरह गूँजता रहता है। इस गीत के राष्ट्रीय प्रभाव को महिमामंडित करने के लिए हम बड़े गर्व से बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इस गीत को सुनकर रो पड़े थे।
सच ही बड़ा मार्मिक गीत है! लेकिन क्या इस गीत की मार्मिकता और संदर्भ, देशवासी तथा सरकार सिर्फ पाँच दशक होने के पहले ही भूल गये। एक ओर तो एक प्रमुख और नेहरू की विरासत संभालनेवाला राष्ट्रीय-राजनैतिक दल चीन के विश्वासघात को नेहरू जी के हृदयाघात का कारण बताता है और दूसरी ओर स्वेच्छा से व्यापारिक समझौता कर देश के घावों पर नमक और मिर्च लगाता है। महाभारत में द्रौपदी ने अपने स्वाभिमान और अपमान को याद दिलाते रहने के लिए वर्षों तक अपने केश को नहीं बाँधा था, आज भारत यह भूल बैठा कि इसी चीन ने हमारी सीमा का अतिक्रमण कर हमारे सम्मान और स्वाभिमान को आहत किया है।
पिछले कुछ दिनों के राजनेताओं के बयान, समाचार-‘पत्रों की कतरनों, संपादकीय-‘लेखों तथा टेलिविजन के समाचार चैनलों पर यकीन करे तो यही समझ में आता है कि चीनी ताकत फिर सक्रिय हो गयी है। अरूणाचल प्रदेश हो या लद्दाख, सभी स्थानों पर चीन घुसपैठ कर रहा है। हम देख रहे हैं, सुन रहे हैं, जवानों की शहादत पर आहें भर रहे हैं और ज्यादा ही हुआ तो सरकार को कोस कर अपने राष्ट्रीय कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं। क्या हमारी देशभक्ति सिर्फ किसी देश विशेष के प्रति क्रिकेट मैच जीत कर बम फोड़ने और राष्ट्रीय पर्वों पर राष्ट्रगान गाने और मिठाई खाने तक सीमित हो गयी है?
देशवासियों, चीन के आक्रमण अब भी जारी हैं और इस बार उसका लक्ष्य भीतर तक है। ये आक्रमण देश की सीमाओं पर तो ही रहा है, साथ ही साथ इस बार के आक्रमण ने देश के बाजारोें पर आक्रमण कर देश की अर्थ-व्यवस्था की कमर तोड़ने का काम आरंभ कर दिया है। भारत की अर्थ-व्यवस्था उसके गाँवों और कुटीर उद्योग पर अवलंबित है। हमारे गाँवों में फैले छोटे-छोटे कुटीर उद्योग, इस देश की रीढ़ थे। आज दीपावली पर देश के घरों को अपने दीपों से रोशन करने की आस लेकर बैठा कुम्हार अपने व्यवसाय में इस चीनी घात से हक्का-बक्का हो गया है। उसके बनाये मिट्टी के दीपक घर के आँगन में मिट्टी का दिया रखा रह गया है। समझौता सरकार ने किया है, आपने नहीं। चीन की वस्तुओं का हमारे बाजार में होना उन शहीदों के साथ मजाक है। आखिर हम और कितना गिरेंगे?
आज आवश्यकता है उस सारे सामान का बहिष्कार करने की, जो चीन से भारत में आ रहा है। देश के लिए लड़ाई लड़ने का काम सिर्फ सीमाओं के प्रहरियों का नहीं है। वक्त पड़ने पर देशवासियों को अपने तरीके से हथियार उठाना होगा। अगर आप ये सामान नहीं खरीदेंगे तो एक समय ऐसा समय आएगा जब सारा माल चीन मे ही सड़ जाएगा। सिर्फ कोई चीज़ सस्ती मिल रही है इसलिए देश की अस्मिता और स्वाभिमान को दाँव पर मत लगाइए।
याद रखिए कि लाल बहादुर शास्त्री जी के आह्वान पर तत्कालीन देशवासियों ने अपने सम्मान और स्वाभिमान के लिए एक समय उपवास आरंभ कर दिया था। यह वही चीन है जिसने हमारी सीमाओं का अतिक्रमण कर कैलाश और मानसरोवर को हथिया रखा है और आज भी हमारी सैकड़ों वर्ग कि.मी. जमीन जिसके कब्जे में है, और ये वही चीन है शायद जिसके कुकर्मों के कारण पिछले दिनों लेह में बादल फट पड़े थे। और सबसे बड़ी बात ये वही चीन है जिसके कारण हम गाते हैं- ‘ऐ मेरे वतन के लोगो…।’
यह तो लोगों पर है कि ज़िआदा पैसे खर्च कर बढ़िया माल लेना चाहते हैं या कम पैसे खर्च के घटिया माल लेना चाहते हैं . भारत को अपनी इंडस्ट्री कम्पैतेतिव बनानी होगी . यह कम्पीटीशन का ज़माना है . आज सारी दुनीआं में चाइना का माल भेजा जा रहा है लेकिन कोई भी देश इम्पोर्ट रेस्ट्रिक्शन नहीं लगा रहा किओंकि वोह चाइना को ऐसी चीजें एक्सपोर्ट करते हैं जो चाइना की जरुरीआत हैं इस लिए इंडिया को भी अपनी एक्सपोर्ट चाइना की तरफ बडानी होगी .
अच्छा लेख. आपने बिलकुल सही लिखा है कि अपना घटिया माल सस्ते दामों पर बेचना चीन का व्यापारिक हथकण्डा है. इस तरह वह हमारे देश को भीतर से खोखला कर देना चाहता है. चीनी माल का पूर्ण बहिष्कार आवश्यक है.