चाहे चेहरे लाख लगा लो, दोहरे मापदंड अपना लो, लेकिन मन का दर्पण तुससे, कभी झूठ न कह पायेगा बहुत दिनों तक भार हृदय का, कभी मनुज न सह पायेगा। धूल झोंक कर भले जगत की, आँखों में हम रह सकते हैं, भूल – भूलकर भूलभुलैया में हम, खुद की रह सकते हैं, लेकिन मन […]
Author: *शरद सुनेरी
गीत
कहाँ कहा कब हमने यह कि, हम पर विपदा भारी है कहाँ कहा कब हमने यह कि, जीवन की दुश्वारी है कहाँ कहा कब हमने यह कि, सारी भूमि हमारी है कहाँ कहा कब हमने यह कि, अब जीवन लाचारी है युगों-युगों से मात-पिता ने इस धरती को सींचा है सुंदरतम भारत माता का, चित्र […]
गाली : एक सांस्कृतिक संपत्ति ( व्यंग्य)
गालियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह ऐसी देव विद्या है जिसे जिज्ञासु, बिना किसी गुरुकुल, विद्यालय-विश्वविद्यालय में गए आत्म-प्रेरणा से सीख लेता है, और लेनेवाला ‘खाता’है। हमारे देश में तो कहावत भी है-‘तोरी गारी, मोरे कान की बाली।’ गाली हमेशा दी जाती है, जिसे बोलचाल की भाषा में “बकना’ कहते हैं। इसे देनेवाला देता है। […]
गीत
जग को जीत करोगे क्या तुम, जब अपनों से हार गये अपनी आँखों के सपनों को, जब अपने ही मार गये। हृदय घात पर घात सहनकर, शिलालेख बन जाता है जब अपना अपने शब्दों से, नक्काशी कर जाता है शब्दों का मैं शिल्पकार, पर हरदम खाली वार गये अपनी आँखों के सपनों को, जब अपने […]
बिटिया की वेदना
आज विदा होती है बाबुल, तुझसे तेरी राजदुलारी तेरी आँखों की ज्योति वो, जो थी तुझको जाँ से प्यारी। असुवन की धारों से तेरी, वह मेरे घावों को धोना कैसे भूल सकूँगी बाबुल, दर्द मेरा पर तेरा रोना क्या भूल पायेगा तू भी, मेरी पहली वह किलकारी आज विदा होती है बाबुल, तुझसे तेरी राजदुलारी।1। […]
विदाई-गीत
कदम-कदम हम साथ चले थे, हमको भूल ना जाना सुख-दुख के जो गीत गाये थे, उनको ना बिसराना। स्वप्न अधूरा इन आँखों का, तुम पूरा करते थे अगर हूक उठती मन मेरे, तुम आहें भरते थे बात-बात पर हँसना अपना, बात-बात मुसकाना कदम-कदम हम साथ चले थे, हमको भूल ना जाना।1। विदा दृगों से करें […]
ग़ज़ल
हर ग़म को अब गले लगाना सीखो आँसू को हथियार बनाना सीखो। फूलों की बातों से कुछ न होगा खारों को तलवार बनाना सीखो। जीवन-सागर में जब नाव फँसी हो हिम्मत को पतवार बनाना सीखो। काली रात है कोई साथ न देगा अंधियारों में राह बनाना सीखो। ज़ालिम दुनिया में गर जीना हो तो नरमुंडो […]
भारत का रूप सजाते हैं
सूरज किरणों का ताज धरे, तारे मोती बन जाते हैं अपनी दौलत देकर के सब, भारत का रूप सजाते हैं। बरखा बूँदें बादल बनकर, मल्हारी गीत सुनाती हैं कोयल बहार के मौसम में, कुहूक मुरली बजाती है ‘शरद’ चाँदनी रातों में, कविता के दीप जलाता है हिम-पुष्पों की वर्षा कर, गजरा हेमंत लगाता है शिशिर […]
पिता जी चाहिए (व्यंग्य)
पुराणों मे लिखा है माता के चरणों में स्वर्ग होता है। और पिता जी के चरणों में जूता। जिसके पड़ते ही सारे नेटवर्क एक साथ मिलने लगते हैं। पिता जी एक पारिवारिक प्राणी है, जो सार्वलौकिक और सार्वभौमिक होता है। सार्वजनिक नहीं होता। यदि कोई अनहोनी नहीं हुई तो प्रायः हर परिवार में एक पिता […]
नेता के देश में नागरिक (व्यंग्य)
भारत संकट के दौर से गुजर रहा है। यह इस देश की नीयती है। इसका वर्तमान हमेशा कंटकाकीर्ण ही रहा है। क्या करें? मुग़लों ने लूटा। अंग्रेजों ने अत्याचार किया। स्वतंत्रता के बाद जनता राजा बन गयी। फिर अपने बाप का राज आ गया। जिसके बाप का राज आता है वह नेता बन जाता है। […]