कुंडलिया छंद
बदला दिन और रात, आते ही आसाढ़
नाचने लगे खेतिहर, दिखाने लगे डाढ
दिखाने लगे डाढ, लगे वो बिजड़ा बोने
लौटे तम के ठांव, मचनिया चढे बिठौने
सुनते मेघ मल्हार, बजाते ढफ चंग तबला
बौछारों में भीग, गाँव का मौसम बदला।
बदला दिन और रात, आते ही आसाढ़
नाचने लगे खेतिहर, दिखाने लगे डाढ
दिखाने लगे डाढ, लगे वो बिजड़ा बोने
लौटे तम के ठांव, मचनिया चढे बिठौने
सुनते मेघ मल्हार, बजाते ढफ चंग तबला
बौछारों में भीग, गाँव का मौसम बदला।
Comments are closed.
छंद अच्छा है. ऐसे ही कुछ छंद और लगाइए.