कविता

तांका

1

देश नमन

हिमालय  मुकुट

जननी गंगा

सदा जय गुंजित

सर्व धर्म रक्षित

2

ह्रदय कुंज

राग रंग उमंग

बसंत संग

प्राण संग उमंग

नयन बहु रंग

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “तांका

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया तांका.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद.

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