कविता

गीत : चीनी सौदागर का असली रूप दिखाने आया हूँ

मैं केवल सिक्कों की खातिर ये व्यापार नहीं करता
वीणापाणि की थाती से मैं व्यभिचार नहीं करता
मैं निकला हूँ करने सौदा भारत माँ की आहों का
भारत माँ के घाव जो भर दे उन बलषाली बाँहों का
मैं व्यापारी नहीं स्वार्थ की हंडी भरनेवालों-सा
कुछ सिक्कों के बदले माँ का सौदा करनेवालों-सा
मैं भारत का दर्द बेचने द्वार तुम्हारे आया हूँ
माता के आँसू से गँुथकर हार बनाये लाया हूँ
मेरे फूलों की डलिया में माँ की चीख-कराहें हैं
क्या तुम लोगे जिनमें थोड़ी टीस, अश्क और आहें हैं?
है गारंटी पूरी मेरी तुमको भी तड़पाएगें
अपने भी दागी चेहरे तुमको इनमें मिल जाएंगे
तुम सस्ते दामो में घटिया सामानों के क्रेता हो
अपने हाथों अपनी माँ की इज्ज़त के विक्रेता हो
सस्ती कीमत में भारत का मान हाट पर बैठा है
कौड़ी के भावों में स्वाभिमान घाट पर बैठा है
सच मानो ये सौदा तुमको नंगा नाच नचाएगा
ये चीनी बनकर सौदागर घर में आग लगाएगा
सस्ते सौदे का ये लालच नाकों चने चबाएगा
लूटेगा आँखों से काजल और समझ नहीं आएगा
सच है योद्धा रणभूमि में वीरगति को पाते हैं
पर सीमाओं के भीतर भी युद्ध लडे़ कुछ जाते हैं
ये हमला दिल के ऊपर ये समझाने आया हूँ
सौदागर चीनी का असली रूप दिखाने आया हूँ

पदचापों को सुनो ध्यान से कोई आहट आती है
सर्द हवाएँ आज हिमालय की फिर क्यों गरमाती हैं
अमरबेल विश्वासघात की देखो फिर मुसकाती है
पाँच दशकवाले घावों को फिर वादी सहलाती है
अरूणाचल के आँगन में छाया फिर से सन्नाटा है
महादेव कैलासपति का टूटा हमसे नाता है
मानसरोवर के तट पर अब भी दुश्मन का पहरा है
भारतमाता के माथे पर दाग बड़ा ये गहरा है
जिन लोगों ने संबंधों को भाई कहकर जोड़ा था
छुरा घोंप फिर पीठ हमारी अनुबंधों को तोड़ा था
वो चीनी फिर रंग बदलकर गिरगिटवाला आए हैं
घाव हिमालय के बासे फिर आज उभरकर आए हैं
अब भी बासठ की विधवाओं की आँखों में पानी है
घर आएगा कभी लौटकर तकती अम्मा-नानी है
बुझे दिवाली में थे जो वह दीप नहीं जल पाए हैं
उजड़े बागों में अब तक भी फूल नहीं खिल पाए हैं
हिमगिरि के मस्तक पर फिर से काले बादल छाए हैं
मनमोहन! मॅकमोहन तोड़ के बैरी फिर घुस आए हैं
ऐसा न हो फिर से दुष्मन हमको ये छल जाए ना
जीभ हमारी कहीं छाछ पी कर भी फिर जल जाए ना
अब तो जागो हे मनमोहन! तुम्हें जगाने आया हूँ
सौदागर चीनी का असली रूप दिखाने आया हूँ।

व्यापारी बनकर ही गोरे इस धरती पर आए थे
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण तक बादल बन छाए थे
ये चपटी नाकोंवाले भी नंबर एक खिलाड़ी हैं
भोली सूरत पर मत जाना इनके पेट में दाढ़ी है
इस चीनी में चीनी कम है और करेला ज्यादा है
चाल चलें घोड़ोंवाली पर दिखते बिल्कुल प्यादा हैं
अवसर मिलते ही ये चीनी सारे वादे तोड़ेंगे
बिच्छू के वंशज हैं ये न डंक मारना छोड़ेंगे
खेल-खिलौने, गुड़िया, मोटर, दे मुसकाने छीनेंगे
ये भारत के बचपन बीते अफसाने छीनंेगे
ये भारत की परियों का सौदर्य चुरानेवाले हैं
सस्ते दामों में भारत का रूप मिटानेवाले हैं
ये चीनी पंजे भारत के हाथ काटनेवाले हैं
इस धरती की लूट के दौलत भूख बाँटनेवाले हैं
पूछ रही हैं उजड़ी मांगें कौन-सी वो मजबूरी थी?
हाथ मिला बैठे कातिल से क्या ये डील ज़रूरी थी?
कल सरहद लूटी थी इनने फिर पूरी तैयारी है
जख्म हिमालय के कहते हैं अब दिल्ली की बारी हैेे।
हाथ मिला बैठे कातिल से, ये कैसी लाचारी है
हे भारत के भाग्य-विधाता, ये सौदा तो भारी है
खूनी नाखूनों में सूखा, खून दिखाने आया हूँ
सौदागर चीनी का असली रूप दिखाने आया हूँ।

3 thoughts on “गीत : चीनी सौदागर का असली रूप दिखाने आया हूँ

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शरद जी ,एक बात और भारत के उद्योगपति भी दुसरे देशों में इन्वेस्ट करके पैसा बना रहे हैं . इंग्लैण्ड में भारत की इन्वैस्त्मैन्त सभ देशों से ज़िआदा है . टाटा को इंग्लैण्ड में रैड कारपेट वैलकम मिलती है . मित्तल को इंग्लैण्ड में स्टील मैंन कहा जाता है . आज वोह इस्ट इंडिया कम्पनी वाले ज़माने लद्द गए . तुम दस वर्ष के भीतर देखोगे कि भारत एक सुपर पावर बन जाएगा . मोदी जी बहुत इमानदार और लोह पुर्ष हैं . वक्त की जरुरत है , वोह बिगड़े हुए लोगों को सीधे करेंगे .

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शरद जी , इतना फिकरमंद होने की भी जरुरत नहीं हैं , विओपार अपनी जगह है , डिफैंस अपनी जगह है , आज १९६२ वाला भारत नहीं है . मोदी जी को अगर चिंता होती तो वोह चीन से नाता तोड़ लेते लेकिन हमारी हकुमत ने उन के उद्योग्पतीओ को इनवाईट किया है कि भारत में पैसा लगाएं . जिस देश ने बंगला देश दो हफ़्तों में बना दिया वोह अपने देश की रक्षा करना जानता है .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत. कुछ पुराना होने के बाद भी आज भी प्रासंगिक है.

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