फिर याज्ञसेनी प्रगटेगी…
फिर कोई याज्ञसेनी
प्रगटेगी,
धर्म को अधर्म के विरुद्ध
खडा करेगी,
जब भरी सभा मे उसकी
लज्जा तार तार होगी,
कुरुक्षेत्र की धधकती ज्वाला मेँ वो तलवार होगी।
जब उसके केश कोई दुशासन गंदे हाथोँ से खेँचेगा,
तब भीमसेन सा उसका रक्षक हुँकार भरेगा,
दुर्योधनोँ की जंघाएँ उसके प्रताप से टूटेगी,
फिर किसी अर्जुन की बन टंकार रण मेँ वो छूटेगी,
वो उठ जागेगी तो अधर्म का विनाश निश्चित होगा,
शकुनी, घृतराष्ट्रो का जत्था तब चिँतित होगा,
नारी को उपभोग समझना मानव अब तुम बंद करो,
धर्म की ग्लानि ना हो ऐँसा कुछ अब प्रबंध करो,
अधर्म की जडेँ फैलती शाखाओँ को क्षीण करो,
किसी द्रोपदी की अस्मिता बचाने स्वयं को कृष्ण प्रवीण करो।
___सौरभ कुमार दुबे
अछे विचार . जब बुराई की इन्तहा हो जाती है तो कोई अवतार जनम ले ही लेता है . इस वक्त तो मैं मोदी को एक अवतार के रूप में देख रहा हूँ .
अच्छी कविता.