कविताधर्म-संस्कृति-अध्यात्म

फिर याज्ञसेनी प्रगटेगी…

फिर कोई याज्ञसेनी
प्रगटेगी,
धर्म को अधर्म के विरुद्ध
खडा करेगी,
जब भरी सभा मे उसकी
लज्जा तार तार होगी,
कुरुक्षेत्र की धधकती ज्वाला मेँ वो तलवार होगी।
जब उसके केश कोई दुशासन गंदे हाथोँ से खेँचेगा,
तब भीमसेन सा उसका रक्षक हुँकार भरेगा,
दुर्योधनोँ की जंघाएँ उसके प्रताप से टूटेगी,
फिर किसी अर्जुन की बन टंकार रण मेँ वो छूटेगी,
वो उठ जागेगी तो अधर्म का विनाश निश्चित होगा,
शकुनी, घृतराष्ट्रो का जत्था तब चिँतित होगा,
नारी को उपभोग समझना मानव अब तुम बंद करो,
धर्म की ग्लानि ना हो ऐँसा कुछ अब प्रबंध करो,
अधर्म की जडेँ फैलती शाखाओँ को क्षीण करो,
किसी द्रोपदी की अस्मिता बचाने स्वयं को कृष्ण प्रवीण करो।

___सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “फिर याज्ञसेनी प्रगटेगी…

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अछे विचार . जब बुराई की इन्तहा हो जाती है तो कोई अवतार जनम ले ही लेता है . इस वक्त तो मैं मोदी को एक अवतार के रूप में देख रहा हूँ .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता.

Comments are closed.