कारोबार
ख्वाबों का ये कारोबार
जो मेरी रातें तुमसे करती है
इक काम करना इन्हें तुम
सुनो कभी बंद मत करना
क्या पता शायद किसी रोज़
तेरे शहर तुमसे मिलने
किसी रोज़ नया सौदा लेकर आ जाऊं
आखिर तुमने भी तो ना जाने
कितने शिकवे सहेज रखे होंगे
अपनी खताएं छुपाने को
ठीक वैसे ही जैसे मैंने
कितने ही नज़्म सहेज रखे है
अपनी महब्बत जताने को
किस्से तुम्हे सुनाने को|
बहुत सुन्दर शब्द हैं आप की कविता के .
शुक्रिया…
वाह ! वाह !! बहुत सुन्दर. कम शब्दों में बहुत कुछ कह गए.
जानकार ख़ुशी हुई कि आपलोगों को नज़्म पसंद आई..