कुण्डलियाँ …
कैसे-कैसे दे गई , दौलत दिल पर घाव ,
रिश्तों से मृदुता गई ,जीवन से रस भाव |
जीवन से रस भाव ,कहें ऋतु कैसी आई ,
स्वयं नीति गुमराह ,भटकती है तरुणाई |
स्वारथ साधें आप ,जतन कर जैसे-तैसे ,
लोभ दिखाए खेल , देखिये कैसे-कैसे ||1
जीवन में उत्साह से, सदा रहे भरपूर .
निर्मलता मन में रहे ,रहें कलुष से दूर .
रहें कलुष से दूर ,दिलों के कँवल खिले से .
हों खुशियों के हार ,तार से तार मिले से .
दिशा-दिशा हो धवल ,धूप आशा की मन में .
रहें सदा परिपूर्ण ,उमंगित इस जीवन में ||2
बाँचो पाती नेह की ,नयना मन के खोल ,
वाणी का वरदान हैं ,बस दो मीठे बोल ।
बस दो मीठे बोल ,बडी़ अदभुत है माया ,
भले कठिन हो काज ,सरल सा हमने पाया ।
समझाती सब सार ,साँस यह आती जाती ,
क्या रहना मगरूर ,नेह की बाँचो पाती । ।3
राधा की पायल बनूँ, या बाँसुरिया ,श्याम ,
दोंनों के मन में रहूँ, इच्छा यह अभिराम ।
इच्छा यह अभिराम ,संग राखें बनवारी ,
दो बाँसुरिया देख , दुखी हों राधा प्यारी ।
हो उनको संताप , मिलेगा सुख बस आधा ,
कान्हा के मन वास , चरण में रख लें राधा ||4
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
आपकी कुण्डलियाँ बहुत रसीली हैं. धन्यवाद.
प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार आपका !
सादर
कुण्डलियाँ पढ़कर अच्छा लगा.
सहृदय प्रतिक्रिया हेतु बहुत आभार !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
जीवन के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करती सार्थक कुण्डलियाँ ।
काव्य के मर्म को स्पर्श करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत सरस कुण्डलियाँ हैं. इस विधा का लोप होता जा रहा है, फिर भी बहुत से कवि इसको अपनाते हैं.
आपकी प्रतिक्रिया बहुत प्रेरक है |हृदय से आभार इस प्रोत्साहन के लिए !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा