कुछ मुक्तक
1.
परिंदों को चिढाने की, किसी को आजमाने की।
नहीं ख्वाहिश रही अपनी जमीं से दूर जाने की।
इधर पर चाँद लगने है लगा हमको बड़ा प्यारा,
इसी खातिर जगी है चाह नभ को आज पाने की॥
2.
पथपर अपलक ताकते, व्याकुलता से नैन।
पता नहीं कब दिन ढले, कब घिर आए रैन।
पहुँच रहे गंतव्य तक, सकुशल मेरे भाव,
आ जाती इक पावती, तो हो जाता चैन॥
3.
बेबसी ने दे दिया कोना कोई गुमनाम है।
कुछ पता चलता नहीं कब सुबह औ’ कब शाम है।
क्यों गिला-शिकवा जमाने से करें हम बेवजह,
टूटे शीशे का यही होता रहा अंजाम है॥
4.
करें क्यों वक्त जाया जख्म इस दिल के दिखाने में।
यहाँ हर साँस ही दमखम लगाती है सताने में।
मिलोगे तुम नहीं ये सोचकर क्यों खर्च दें आँसू,
बहुत कुछ है न जो हमको मिला जालिम जमाने में॥
5.
अपने ही बोझों से दबकर टूट-टूट ढह जाने की।
खेल-खेल में अश्कों के दरिया में ही बह जाने की।
तुम ठुकरा के चले गये राहों का पत्थर जान हमें,
अरे पड़ चुकी आदत है अब तो ये सब सह जाने की॥
आपके मुक्तक अच्छे है.
सुंदर मुक्तक ! बहुत खूब !!