बजट
जनता का बजट जनता को मिला…
सभी वर्ग को कुछ ना कुछ अवश्य मिला…
मिली किसी को आस…
किसी की बढ गयी इस बजट से प्यास…
अच्छे राजनेताओं से उम्मीद रखना है अच्छी बात…
मगर समय से पहले पेडों पर फल लग जायें…
सोचना है गलत बात…
धीरे-धीरे छेद भरेंगे…
धीरे-धीरे मरहम लगेंगे…
इतना ही जनता रखे विश्वास…
(संगीता कुमारी)
धीरे धीरे घाव भरेगे, धीरे धीरे मरहम लगेंगें, (छेद में मरहम नही लगता मरहम तो घाव में लगता है) कविता अच्छी लगी, बजट को लेकर नेताओं पर निशाना साधा है।
आपकी कविता ठीक है. बजट पर और व्यापक प्रतिक्रिया हो सकती थी.
अच्छी भावनाएं.