कविता

दोहे : माँ- ममता और दुलार

जगदम्बा के रूप में, रहती है हर ठाँव।
माँ के आँचल में सदा, होती सुख की छाँव।१।

ममता का जिसकी नहीं, होता कोई अन्त।
माँ के ही दिल में बसा, करुणा-प्यार अनन्त।२।

मतलब का संसार है, मतलब के उपहार।
लेकिन दुनिया में नहीं, माता जैसा प्यार।३।

लालन-पालन में दिया, ममता और दुलार।
बोली-भाषा को सिखा, माँ करती उपकार।४।

होता है सन्तान का, माता का सम्वाद।
माता को करते सभी, दुख आने पर याद।५।

नारायण से भी बड़ी, नारी की है जात।
सृजन कर रही सृष्टि का, इसीलिए है मात।६।

पत्नी, पुत्री, बहन का, मात-पिता का प्यार।
उनको ही मिलता सदा, जिनका हृदय उदार।७।

जिसके सिर पर हो सदा, माता का आशीष।
वो ही तो कहलायगा, वाणी का वागीश।८।

माता केवल एक है, गुणवाची हैं “रूप”।
माता की सन्तान हैं, रंक-भिखारी-भूप।९।

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

2 thoughts on “दोहे : माँ- ममता और दुलार

  • धनंजय सिंह

    माता को करते सभी दुःख अने पर याद, यह बात सही है. अपने दोहे में कम शब्दों में ज्यादा बात कह दी है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छे दोहे ! माँ की ममता की समता कोई नहीं कर सकता.

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