गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका छन्द “मधुमास सबको भा रहा”

गीतिका छन्द “मधुमास सबको भा रहा”—खिल उठे हैं बाग-वन मधुमास सबको भा रहा।होलिका के बाद में नव वर्ष चलकर आ रहा।।—वृक्ष सब छोटे-बड़े नव पल्लवों को पा गये।आम, जामुन-नीम भी मदमस्त हो बौरा गये।।—जोड़कर तिनके बया है नीड़ अपना बुन रहा।देवपूजन के लिए नव सुमन माली चुन रहा।।—डाल पर बैठे हुए कोकिल तराने गा रहे।तितलियाँ-मधुमक्खियाँ […]

मुक्तक/दोहा

“शब्द बहुत अनमोल”

सोलह दोहे “शब्द बहुत अनमोल”—जिनको कविता की नहीं, कोई भी पहचान।छन्दों के वो बन गये, आज कथित भगवान।1।—भरा पिटारा ज्ञान का, देखो आँखें खोल।शब्दकोश में हैं भरे, शब्द बहुत अनमोल।2।—जिनकी अपनी है नहीं, चेतन प्रज्ञा मित्र।कदम-कदम पर वो करें, हरकत यहाँ विचित्र।3।—सीधे-सीधे ही कहो, अपने मन की बात।कविता में करना नहीं, घात और प्रतिघात।4।—दोहों में […]

गीत/नवगीत

गीत “मन के जरा विकार हरो”

देता है ऋतुराज निमन्त्रण,तन-मन का शृंगार करो।पतझड़ की मारी बगिया में,फिर से नवल निखार भरो।। नये पंख पक्षी पाते हैं,नवपल्लव वृक्षों में आते,आँगन-उपवन, तन-मन सबके,वासन्ती होकर मुस्काते,स्नेह और श्रद्धा-आशा केदीपों का आधार धरो।पतझड़ की मारी बगिया में,फिर से नवल निखार भरो।। मन के हारे हार औरमन के जीते ही जीत यहाँ,नजर उठा करके तो देखो,बुला […]

गीत/नवगीत

होली गीत “छाया है उल्लास, चलो होली खेलेंगे”

मन में आशायें लेकर के,आया हैं मधुमास, चलो होली खेलेंगे।मूक-इशारों को लेकर के,आया है विश्वास, चलो होली खेलेंगे।।—मन-उपवन में सुन्दर-सुन्दर, सुमन खिलें हैं,रंग बसन्ती पहने, धरती-गगन मिले हैं,बाग-बहारों को लेकर के,छाया है उल्लास, चलो होली खेलेंगे।—सरिता का सागर में, ठौर-ठिकाना सा है,प्रेम-प्रीत का मौसम, बड़ा सुहाना सा है,शोख नजारों को ले करके,आया है दिन खास, […]

गीत/नवगीत

गीत “कंचन का गलियारा है”

गीत “कंचन का गलियारा है”—वासन्ती परिधान पहनकर, मौसम आया प्यारा है।कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।—तितली सुन्दर पंख हिलाती, भँवरे गुंजन करते हैं,खेतों में लहराते बिरुए, जीवन में रस भरते हैं,उपवन की फुलवारी लगती कंचन का गलियारा है।कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।—बीन-बीनकर तिनके लाते, चिड़िया और कबूतर भी,बड़े जतन से […]

संस्मरण

संस्मरण – अच्छे साहित्यकार नहीं, अच्छे व्यक्ति बनिए

बाबा नागार्जुन की इतनी स्मृतियाँ मेरे मन और मस्तिष्क में भरी पड़ी हैं कि एक संस्मरण लिखता हूँ तो दूसरा याद आ आता है। मेरे व वाचस्पति जी के एक चाटुकार मित्र थे। जो वैद्य जी के नाम से मशहूर थे। वे अपने नाम के आगे ‘निराश’ लिखते थे। अच्छे शायर माने जाते थे। आजकल […]

संस्मरण

संस्मरण “अच्छे साहित्यकार नहीं अच्छे व्यक्ति बनिए”

संस्मरण “अच्छे साहित्यकार नहीं अच्छे व्यक्ति बनिए”—(चित्र में- (बालक) मेरा छोटा पुत्र विनीत, मेरे कन्धे पर हाथ रखे बाबा नागार्जुन और चाय वाले भट्ट जी, पीछे- आज से वर्ष पूर्व का खटीमा का बस स्टेशन। जहाँ दुर्गादत्त भट्ट जी की चाय की दुकान थी, साथ में वह भी खड़े हैं)—बाबा नागार्जुन की इतनी स्मृतियाँ मेरे […]

गीत/नवगीत

गीत “प्यार के परिवेश की सूखी धरा”

होश गुम हैं, जोश है मन में भरा।प्यार के परिवेश की सूखी धरा।।—चल पड़ा है दौर कैसा, हर बशर मगरूर है,आदमी की आदमीयत आज चकनाचूर है,हाट में मिलता नहीं सोना खरा।प्यार के परिवेश की सूखी धरा।।—खो गया है गाँव का वातावरण,हो गया दूषित शहर का आवरण,जी रहा इंसान होकर अधमरा।प्यार के परिवेश की सूखी धरा।।—अब […]

बाल कविता

बाल कविता “अपनी बेरी गदरायी है”

लगा हुआ है इनका ढेर।ठेले पर बिकते हैं बेर।।—रहते हैं काँटों के संग।इनके हैं मनमोहक रंग।।—जो हरियल हैं, वे कच्चे हैं।जो पीले हैं, वे पक्के हैं।।—ये सबके मन को ललचाते।हम बच्चों को बहुत लुभाते।।—शंकर जी को भोग लगाते।व्रत में हम बेरों को खाते।।—ऋतु बसन्त की मन भायी है।अपनी बेरी गदरायी है।।—(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

गीत/नवगीत

“सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा”

जो मेरे मन को भायेगा,उस पर मैं कलम चलाऊँगा।दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,आगे को बढ़ता जाऊँगा।।—मैं कभी वक्र होकर घूमूँ,हो जाऊँ सरल-सपाट कहीं।मैं स्वतन्त्र हूँ, मैं स्वछन्द हूँ,मैं कोई चारण भाट नहीं।कहने से मैं नहीं लिखूँगा,गीत न जबरन गाऊँगा।दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,आगे को बढ़ता जाऊँगा।।—भावों की अविरल धारा में,डुबकी रोज लगाऊँगा।शब्दों की पतवार थाम,मैं नौका पार […]