गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दीदार क्या हुआ तेरा धड़कन मचल गई
कितना सम्हाला लेकिन नज़र फिसल गई।

कुछ इस तरह आपका अंदाज ए बयां है
हम आशिकी से दूर थे नियत बदल गई।

चाहत रही न दिल को नजारा कोई मिले
दीदार ए यार से मेरी तबियत बहल गई।

क्या होगा आपने अगर दामन छुड़ा लिया
ये सोच कर हमारी धड़कन दहल गई।

हाथ आपका मेरे हाथों में आ गया जब
आह मेरे दिल की मेरे दिल से निकल गई।

बिखरे थे जैसे कांच के टुकड़े हों फर्श पर
तुमने मुस्कुरा के देखा जानिब सम्हल गई।

— पावनी जानिब, सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

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