खट्ठा-मीठा : पुल कहाँ बनेगा?
‘पुल यहीं बनेगाऽऽ!’ बरसाती नदी के एक किनारे पर खड़े लोगों के एक समूह के नेता ने नारा लगाया।
‘यहीं बनेगा, यहीं बनेगा’ उस समूह के लोगों ने उसका समर्थन किया।
‘पुल वहाँ बनेगाऽऽ!’ दूसरे समूह के नेता ने जबाबी नारा लगाया।
‘वहाँ बनेगा, वहाँ बनेगा’ उस समूह के लोगों ने उसका समर्थन किया।
दोनों समूहों में जबाबी नारेबाजी शुरू हो गयी। देर तक नारेबाजी होती रही।
पुल के लिए सर्वे करने आया हुआ सरकारी अधिकारी परेशान हो गया। बड़ी मुश्किल से उसने दोनों ओर की नारेबाजी बन्द करायी। बोला- ‘आप एक-एक करके अपनी बात कहें।’
‘आप पुल यहीं क्यों बनवाना चाहते हैं?’ उसने पहले समूह के नेता से पूछा।
नेता बोला- ‘हमारे गाँव के लोगों को 5 किलोमीटर का चक्कर काटकर शहर जाना पड़ता है। यहाँ पुल बन जाने से चक्कर नहीं काटना पड़ेगा।’ उस समूह के लोगों ने उसकी बात का समर्थन किया। वास्तविकता यह थी कि उस नेता का फार्म हाउस उस जगह से पास पड़ता था।
‘आप पुल को वहाँ ही क्यों बनवाना चाहते हैं?’ सर्वे करने आये अधिकारी ने दूसरे समूह के नेता से पूछा।
नेता ने बताया- ‘हमारे गाँव के लोगों को शहर जाने के लिए 6 किलोमीटर का चक्कर काटना पड़ता है। वहाँ पुल बन जाने से चक्कर बच जाएगा।’ दूसरे समूह के लोगों ने सिर हिलाकर उसकी बात का समर्थन किया। वास्तविकता यह थी कि उसका फार्म हाउस उस जगह के पास था।
जबाबी नारेबाजी फिर शुरू हो गयी। सर्वे करने आये अधिकारी ने बड़ी मुश्किल से फिर नारेबाजी बन्द करायी और कहा- ‘आप लोग आपस में मिलकर तय कर लो कि पुल कहाँ बनेगा। जब तय हो जाये, तो मेरे पास आ जाना।’ यह कहकर वह अपनी कार में बैठकर चलता बना।
अधिकारी के जाते ही दोनों समूहों में कहा-सुनी होने लगी। मार-पीट तक की नौबत आ गयी। अन्ततः कोई फैसला नहीं लिया जा सका और वे सब अपने-अपने घर चले गये।
अभी तक तय नहीं हुआ है कि पुल कहाँ बनेगा। दोनों गाँव वाले 5-6 किलोमीटर का चक्कर काट रहे हैं। कब तक काटते रहेंगे कोई नहीं जानता।
बहुत करारा व्यंग ,ऐसे स्वार्थी नेताऔ का स्वार्थ देश को ले डूबता है | जब तक जनता ऐसे इंसानों को नेता चुनती रहेगी देश और जनता की भलाई कभी नहीं होगी |
धन्यवाद, बहिन जी, सही कहा आपने.
यथार्थ उकेरा आपने !
आभार, डॉ साहिबा.
बेहतर व्यंग.
आभार, बन्धु.
आपने क्षुद्र स्वार्थी नेताओं पर बहुत अच्छा व्यंग्य किया है. देश कि प्रगति में ये रोड़े हैं.
टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.